दस वर्ष पूर्व 19 अगस्त 2013 की घटना के बाद नहीं हुआ धमारा घाट स्टेशन का समुचित विकास

ब्रजेश भारती : सिमरी बख्तियारपुर (सहरसा) पूर्व मध्य रेलवे अंतर्गत सहरसा – मानसी रेलखंड के धमारा घाट स्टेशन पर राज्यरानी एक्सप्रेस कांड के दस वर्ष होने के बाद भी विकास से जुड़ा कोई भी ऐसा बदलाव नही दिख रहा हैं जिससे यह प्रतित हो की रेलवे या राज्य सरकार ने इस घटना से कुछ सबक लिया।

फाइल फोटो, धमारा घाट स्टेशन

धमारा घाट स्टेशन पर घटना के बाद विकास की दिशा मे कई कार्यों की शुरुआत की गई परंतु वो कार्य नाकाफी साबित हर। घटना के बाद जिन कार्यों की शुरुआत की गई उनमे प्लेटफोर्म, ऊँचीकरण, प्लेटफोर्म विस्तारीकरण आदि कार्य शामिल रहे। इसके अलावे 415 मीटर लम्बा फुट ओवरब्रिज कार्य की भी शुरुआत किया गया। जो बन कर तैयार हो गया, लेकिन अब भी कई विकास कार्य नहीं हो पाए, जिसकी उम्मीद जनता लगाए हुए थी।

ज्ञात हो कि धमारा घाट स्टेशन पूरे भारत मे सुर्खियों मे तब आया जब 19 अगस्त 2013 की सुबह सहरसा – पटना राज्यरानी एक्सप्रेस से कट कर लगभग 28 लोगो की मौत हो गई थी। सभी मृतक धमारा घाट स्थित कात्यायनी मंदिर मे पूजा करने आये थे और ट्रेन की चपेट में आ काल के गाल मे समा गये।

विकास की उठी थी मांग : घटना के बाद आक्रोशित लोगो ने ट्रेनों में आग भी लगा दी। घटित घटना से संपूर्ण भारतवर्ष में राजनीतिक हड़कंप मच गया। तत्कालीन रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी ने भी घटना की शाम धमारा स्टेशन का दौरा किया और स्टेशन के विकास का आश्वाशन भी दिया। इसके साथ ही सामाजिक सहित राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा धमारा स्टेशन के विकास की मांग की गई।

रेल हादसे के कुछ दिनों बाद 21 अगस्त से युवा शक्ति के प्रदेश अध्यक्ष नागेंद्र सिंह त्यागी, आम आदमी पार्टी से जुड़े लोग व लोक गायक छैला बिहारी ने धमारा घाट स्टेशन पर आमरण अनशन की शुरुआत की थी। 25 अगस्त को तत्कालीन डीडीसी सुरेश चौधरी एवं रेल विभाग के एडिशनल डिविजन मैनेजर एनएस पटियाल ने धमारा घाट स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या एक को 232 मीटर बढ़ाने, प्लेटफार्म संख्या दो पर 415 मीटर लंबा प्लेटफॉर्म का निर्माण, एक से दो पर जाने के लिए फुटओवर ब्रिज निर्माण की स्वीकृति की बात कही थी।
वही डीडीसी द्वारा प्लेटफार्म नंबर तीन पर दोनों साइड से लोहे की जाफरी लगाये जाने की बात कही गई थी।

वही 28 अगस्त को अपराह्न लगभग चार बजे राज्य सरकार के तत्कालीन एसडीपीओ राजीव रंजन, रेल विभाग के कई कर्मी धमारा घाट रेलवे स्टेशन पहुंच कर तत्कालीन खगड़िया जिला पदाधिकारी द्वारा भेजे पत्र में राज्य सरकार के सचिव प्रत्यय अमृत द्वारा बदला घाट से कोपरिया तक सड़क निर्माण की स्वीकृति करने की अनुशंसा केंद्र सरकार को भेजे जाने का उल्लेख किया गया था। इसके उपरांत अनशनकारियों ने अनशन समाप्त करने की घोषणा की थी।

लेकिन दस वर्ष पूरा होने के बावजूद वादे अधूरे ही है। हां, धमारा घाट स्टेशन पर कुछ कार्य जरूर हुए जो नाकाफी है। साथ ही राज्य सरकार द्वारा भी मानसी से कोपरिया के बीच सीधी सडक बनाने की बात हुई। लेकिन घटना के कई वर्ष बाद भी जमीनी स्तर पर उन बातों और वादों को हकीकत बनने मे काफी समय लगने की उम्मीद है।

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वर्तमान मे धमारा स्टेशन पर प्लेटफोर्म ऊँचीकरण के नाम पर कुछ नहीं हुआ है। वही अब तक जाफरी भी नही लगी है। पूर्ण कार्य के रूप मे रेलवे द्वारा लगाया गया स्टेशन पर लाउडस्पीकर और फुट ओवरब्रिज है। यदि बात राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित बदला – कोपड़िया सड़क की करें तो उस कार्य की भी गति काफी मंथर है और अभी तक सलखुआ से फनगो हॉल्ट तक ही सड़क बन पाई है।‌ आज भी कांवरिये या कात्यायनी माँ के भक्त रेलवे लाइन और रेल पुल के द्वारा ही आना-जाना करते है जिस कारण हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती हैं।

हॉर्न बजी होती, तो.. राज्यरानी ट्रेन हादसे मे अकाल मृत्यु की शिकार हुई सलखुआ प्रखण्ड अंतर्गत मुबारकपुर गांव के शर्मा टोला निवासी रामपरी देवी की चर्चा होते ही परिजनों के आँखों मे अश्रुधारा बहने लगती है। रामपरी देवी का पुत्र मिथुन शर्मा माँ की चर्चा करते हुए कहता है कि मुआवजा ले लो, मगर मेरी माँ लौटा दो। वही इसी टोले की गोंडी देवी इस घटना में बाल-बाल बच गई। गोंडी देवी बताती है कि चार दिनों तक वह अपना सुध-बुध खो बैठी थी, नजर के सामने लोगो को काल के गाल मे जाते देखा। गोंडी देवी घटना के दस वर्ष बाद भी इस चीज पर अड़ी है कि राज्यरानी के ड्राईवर ने हॉर्न नही बजाई और यदि बजाई होती तो यह हादसा ना होता।

वही घटना के दिन राज्यरानी से पटना जा रहे सिमरी बख्तियारपुर निवासी आशुतोष गुप्ता भी घटना को लेकर काफी हद तक रेलवे को जिम्मेवार मानते है। आशुतोष गुप्ता कहते है कि शायद ड्राइवर ने थोड़ा धैर्यपूर्वक ट्रेन बढ़ाया होता तो यह हादसा नही होता।

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