प्रत्येक साल बाढ़ नियंत्रण, राहत पर मचती है लूट, स्थाई समाधान नहीं किसी का ध्यान

संपादक की कलम से……! कोशी प्रोजेक्ट निर्माण के छः दशक बाद भी आज तक यह परियोजना अधुरा है। कोशी तटबंध के अन्दर नदी का पानी नहीं आएगा तो फिर क्या आएगा ? चुंकि यह नदी का घर है तो जाहिर सी बात है यहां पानी आएगा ही, तो फिर क्यों यह हाय तौबा की बाढ़ आ गया।

बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह ने पूर्व कोशी तटबंध का शिलान्यास किया (फाइल फोटो)

कोशी प्रोजेक्ट एक परिचय : यू तो सप्त कोशी अंग्रेजों के जमाने से तबाही मचाती चली आ रही है ऐसा माना जाता है अंग्रेजों ने ही बाढ़ नियंत्रण की शुरुआत की थी। सन 1779 के आसपास मेजर जे.रेनल, सन 1863 में जेम्स फरगुसन व उसके बाद एफए सिलिड फिल्ड ने बाढ़ नियंत्रण पर अध्ययन किया।

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लेकिन जब 1869-70 में पूर्णिया में बाढ़ का तांडव देखने को मिला था तो अंतिम फैसला हुआ फाइनल बाढ़ नियंत्रण का। नेपाल की उदयपुर जिला की बराह क्षेत्र में बाँध निर्माण की प्रस्ताव लाया गया। नेपाल की राणा प्रधानमन्त्री बीर सम्शेर बराह क्षेत्र से पांच छः किलोमीटर निचे चतरा में बाँध निर्माण के लिए राजी हुए। लेकिन तब तक अंग्रेजी शासन समाप्त हो गया और यह ठंडे बस्ते में चला गया।

कोशी नदी (फाइल फोटो)

लेकिन आजादी बाद नेपाल के प्रधानमंत्री बीपी कोइराला के साथ समझौता उपरांत कोशी नदी पर सन 1954 से लेकर 1965 के बीच बराज का निर्माण पुरा हुआ। इसमें पानी के बहाव के नियंत्रण के लिये 56 फाटक बने हैं जिन्हें नियंत्रित करने का कार्य भारत के अधिकारी करते हैं। इस बाँध के थोड़ा आगे (नीचे) भारतीय सीमा में भारत ने तटबन्ध बनाये हैं।

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जैसा की हमने पहले ही बता दिया कि कोसी नदी पर बांध बनाने का काम ब्रिटिश शासन काल के समय से विचाराधीन था लेकिन ब्रिटिश सरकार को ये चिन्ता थी कि कोशी पर तटबन्ध बनाने से इसके प्राकृतिक बहाव के कारण यह टूट भी सकता है। अंग्रेजी हुकूमत ने तटबंध नहीं बनाने का निर्णय इस बात पर किया कि तटबंध टूटने से जो क्षति होगी उसकी भरपाई करना अधिक कठिन सिद्ध होगा।

कोशी प्रोजेक्ट एक डायग्राम

इसी चिन्ता के बीच ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया और आज़ादी के बाद सन् 1954 में भारत सरकार ने नेपाल के साथ समझौता किया और बाँध बन तैयार हो गया।

बाँध की क्षमता : कोसी नदी का बाँध बनाते समय अभियंताओं ने आकलन किया था कि यह नौ लाख घनफ़ुट प्रति सेकेंड (क्यूसेक) पानी के बहाव को बर्दाश्त कर सकेगा और बाँध की आयु 25 वर्ष आँकी गई थी।

बराज

कोशी बराज नेपाल की सीमा में बना और इसके रखरखाव का काम भारतीय अभियंताओं को सौंपा गया। इसके बाद अब तक सात बार ये बाँध टूट चुका है और नदी की धारा की दिशा में छोटे-मोटे बदलाव होते रहे हैं। बराज में बालू के निक्षेपण के कारण जलस्तर बढ़ जाता है और बाँध के टूटने का खतरा बना रहता है।

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बाँध पहली बार 1963 में टूटा था। इसके बाद 1968 में यह 5 स्थानों पर टूटा। उस समय नदी में पानी का बहाव 9 लाख 13 हज़ार क्यूसेक मापा गया था। वर्ष 1991 में नेपाल के जोगनिया तथा 2008 में यह नेपाल के ही कुसहा नामक स्थान पर टूटा। वर्ष 2008 में जब यह टूटा तो इसमें बहाव महज़ 1 लाख 44 हज़ार क्यूसेक था।

कोशी नदी (गुगल मैप)

कुसहा त्रासदी बाद और उससे पहले बांध निर्माण के साथ प्रत्येक साल बाढ़ नियंत्रण, बाढ़ राहत पर करोड़ों रूपए पानी की तरह बहाए जाते रहे हैं लेकिन अब तक अधूरे पड़े कोशी प्रोजेक्ट की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। बहुतों सरकारे आई और चली गई लेकिन सभी ने कोशी वासियों को छलने के अलावे कुछ नहीं दिया।

क्या है कोशी प्रोजेक्ट : जब कोशी परियोजना की शुरुआत हो रही थी तो कई स्तर पर गहन विचार विमर्श हुआ। कोसी के दाहिने और बाएँ किनारों के बीच एक 240 कि.मी. लंबा तटबंध बनाया गया है। सबसे बड़ी समस्या उस वक्त दोनों तटबंधों के बीच बसे लोगों को लेकर उठी थी।

पूर्व कोशी तटबंध वर्तमान स्थिति

विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इन लोगों को विस्थापन व पुर्नवास व जिन लोगों की जमीन इस बीच आया उसे जमीन उपलब्ध कराना बहुत बड़ा सबाल खड़ा कर दिया था इस प्रोजेक्ट के बीच। गहन मंथन बाद जमीन उपलब्ध कराना संभव कार्य नहीं हुआ और सभी लोगों को पुर्नवासित की बात हुई लेकिन यह भी संभव नहीं हुआ। कुछ को पुर्नवास प्राप्त हुआ बहुतों को नहीं।

जमीन के लिए यह बात हुई की जिनकी जो जमीन है वह उस पर खेती कर सकते हैं। यही पर यह प्रोजेक्ट मेरे नजर में फैल हो गया। आलेख-विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित। क्रमशः