कभी 9 लाख क्यूसेक पानी क्षमता वाला बांध आज तीन लाख क्यूसेक डगमगाने लगता है
सहरसा से भार्गव भारद्वाज की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट :-
आजादी के सत्तर दशक बाद आज भी सुबे एक ईलाका कोशी अपनी बदहाली पर आशूं बहा रहा है। हलांकि सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षो से कोशी के विकास में जिस प्रकार की अभिरूची दिखला रही है और हर वर्ष बाढ़ के बाद जिस प्रकार के बर्बादी के मंजर कोशी में दिखने को मिलते है उसने कोशीवासीयों को बाढ और विकास के दौराहे पर खड़ा कर दिया है।
एक तरफ तकरीबन साठ बरसों से विकास के लिए तरस रही जनता को सड़क ,पुल,बिजली जैसी विकास सुविधा के लिए कृतसंकल्पित सरकार विकास के नाम पर सैकड़ो करोड़ प्रत्येक वर्ष खर्च कर रही है वहीं कटाव और विस्थापन का दर्द अब भी यहां के लोग क्षेलने को विवस है।
अपने निर्माण काल में नौ लाख क्युसेक जलप्रवाह को सहजता से क्षेलने वाले तटबंध अब तीन लाख के प्रवाह में ही लोगों को डराने लगती है।ऐसे में उन विशेषज्ञों द्वारा दिए गए सावधानियों का क्या जिसके अनुसार नदी के प्रवाह क्षेत्र में वसे गांवों से नदी के प्रवाह में उत्पन्न अवरोधों से भविष्य में तटबंध पर खतरे की बात कही गई थी।
पुनर्वास की लचर व्यवस्था ने कोशी को आक्रमक बना दिया-
कोशी पुनर्वास को लेकर राजनैतिक दलों की मंशा तटबंध निर्माण के शुरूआती दिनों से ठीक नहीं रही है सरकार द्वारा कोशी पुनर्वास के रूप सबसे पहले एकिकृत बिहार के रामगढ में जमीन दी गई जिसके विरोध के बाद तटबंध के बाहर के गांवों मे पुनर्वास के लिए भूमी अधिग्रहण शुरू किया गया।
शुरूआती दिनों से ही कोशी तटबंध के निर्माण का विभिन्न राजनितिक दलों ने जिस प्रकार राजनितिक लाभ उठाया है उसी प्रकार के राजनितिक लाभ अब कोशी के विकास के नाम पर उठाने का प्रयास किया जा रहा है।
तटबंध निर्माण के समय कोशी प्रवाह क्षेत्र में पड़ने वाले जिन 304 गांव के लगभग दस लाख की आबादी को पुनर्वास देने का वादा किया गया उनमें आज भी सरकार महज 25 प्रतिशत ही सफल हो पायी है।कोशी के जलग्रहण क्षेत्र के सुपौल,सहरसा,मधुवनी एवं दरभंगा जिले के 386 गांव के 54 हजार परिवारों को पुनर्वास योग्य माना गया था।
फोटो क्रेडिट : अजय कुमार कोशी बिहार