संपादक की कलम से :-

ब्रजेश की बात

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को देश के नाम अपने संबोधन में कई बातों का जिक्र किए। अमुमन जब भी वें देश को संबोधित करने आते हैं। एक बड़ा तबका उनको सुनने कम उनमें कमियां ढूंढने कि इस बार वो कौन शब्द पुरे भाषण में कितनी बार बोले, इस बार कितने बार उन्होंने झूठ बोला, वगैरह वगैरह.……!

खैर उनमें हम नहीं है। कम हो रहे कोरोना संक्रमण के बीच अपने संबोधन में दो जो सबसे बड़ी बात की घोषणा की गई उनमें 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में दिपावली तक राशन व कोरोना की वैक्सीन देने का घोषणा किया गया।

राशन की घोषणा का हम समर्थन नहीं करेंगे। कतई नहीं करेंगे, क्योंकि इससे भ्रष्टाचार व घुसखोरी को बढ़ावा मिलता है। 80 करोड़ देश वासियों को कितना लाभ मिलेगा यह तो हमें पता नहीं लेकिन खाद्य आपूर्ति से जुड़े किसी व्यक्ति से लेकर पानी के पाइप लाइन वाले पाइप में माइक व लोगो लगाकर यूट्यूब पर न्यूज़ रिपोर्टर बनें लोगों तक को दिपावली तक बल्ले-बल्ले लाभ मिलेगा इतना तय है।

हां, एक ओर लोग इसमें लाभान्वित होंगे वह है खाद्यान्न के री-साईकिल-बीन में शामिल वर्ग। आप सोच रहें होंगें ये क्या होता है तो आपको बहुत नीचे तक आना होगा। जो खाद्यान्न खास करके जो चावल अंतिम पायदान के लाभूको को दिया जाता है वह खाने लायक नहीं होता है। उसना चावल तो थोड़ा ठीक भी रहता है लेकिन अरवा चावल बिल्कुल खानें लायक नहीं होता है और बिहार के लोग इसे खाते भी कम है। इसलिए वो खाद्यान्न उठाव कर उसे बेच देते हैं।

बेचने का तरीका भी बहुत है। कुछ लोग पीडीएस डीलर के यहां अंगूठा लगाकर बेच देतें हैं कुछ लोग खाद्यान्न लेकर ग्रामीण स्तर पर फेरी वालों के हाथों बेच देते हैं। लेकिन बेचते जरूर है क्योंकि वो खानें के लायक नहीं होता है। एक और बात आज-कल वो चावल खाता कौन है। उसी को बेचकर कम ही सही 22 कैरेट, 24 कैरेट, गोल्ड, बासमती, गोल्डी सहित दर्जनों नामक पैकेज वाला चावल बाजार में उपलब्ध है वहीं खाएंगे।

खैर अब बात करेंगे वैक्सीन कि तो यह भारत में शुरू होने से पहले ही विदेशी को भेज दिया गया, उस समय लगता था कि हमारे देश को इसकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी। लेकिन हुआ उल्टा, जरूरत ही नहीं कोरोना ने दुसरी लहर ऐसी पैदा किया कि इंसान अपनी इंसानियत भूल गया, पड़ोसी अपना फ़र्ज़, कुल मिलाकर कर दुसरी लहर ने वो सब कुछ दिखा दिया जो नहीं होना चाहिए था।

पीएम साहेब ने वैक्सीन की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले लिए इस बात की खुशी जो वैक्सीन नहीं लगाना चाहते हैं उसको हुई है। देश के जिम्मेदार पीएम होने के नाते यह देर से उठाया गया कदम हम मानते हैं ये काम उन्हें पहले कर लेना चाहिए था। हमारा देश भारत भी दुनिया के देशों से एकदम अलग है। जिस वैक्सीन पर राजनीति गरम रहती है उसको जनता को लेने के लिए कलेक्टर से लेकर स्वास्थ्य कर्मी तक को गुज़ारिश करनी पड़ रही है।

वैक्सीन के संबंध में मेरी एक राय है कि इसको पुरी तरह देश में ओपेन कर देना चाहिए। जिनको जहां मन हो वैक्सीन लगवा सकते हैं। इस वैक्सीन की जो रखने का या फिर देने का मानक है वैसी समतुल्य कई वैक्सीन अभी खुले बाजार में मिल रहा है तो फिर उसको क्यों हाय-तौबा कर दी जा रही है। गैस सब्सिडी की तरह बड़े लोगों को बाजार से, गरीब गुरबों को सरकारी अस्पताल में मुफ़्त वैक्सीनेशन का विकल्प दे देना चाहिए था।

इससे सबसे बड़ा फायदा यह होता कि तेजी से जनता का टीकाकरण हो जाता और बड़े लोग अपना रूपए लगा वैक्सीन लेते तो आर्थिक बोझ भी कम होता। अरे एक ओर बात कुछ काम एनजीओ को भी दे दिया जाता समाजसेवा का वो किस दिन काम आता। गांव-गांव जाकर शिविर लगाकर फीता काट अखबार में फोटू छपवा समाजसेवा कर जनता का वैक्सीनेशन करते। आम का आम गुठली का दाम मिल जाता देश को…! खैर आगे आगे देखिए होता है क्या ?