हरेबा गांव स्थित कव्वाली स्थल से लौटकर ब्रजेश भारती की रिपोर्ट :-
सलखुआ प्रखंड के हरेबा गांव में शुक्रवार को मिल्लत कमेटी के तत्वाधान में कव्वाली का मुकाबला कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत लोक जनशक्ति पार्टी के नेता युसूफ सलाहउद्दीन और पत्रकार दीपांकर श्रीवास्तव, मुखिया रमन कुमार बब्बू, पंचायत समिति अरशद मंजर आदि ने फीता काट कर किया।
इसके उपरांत युसूफ सलाहउद्दीन ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि यह धरती सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल रही है।उन्होंने कहा कि दुनिया में दुसरो की मदद करना ही असली इस्लाम है, यतीमों की मदद करें और यतीमो की मदद करना ही असली ईद है।
वही दीपांकर श्रीवास्तव ने कहा कि इस तरह के आयोजन से आपसी एकता मजबूत होती है।समाज में आपसी भाई चारा बढ़ता है।
मुखिया रमन कुमार ने कहा कि आज के समय में भेदभाव की राजनीति छोड़ प्यार की राह पर चले और हिंदू – मुसलमान की सोच त्याग कर इंसान बने।सबसे पहले हमलोग इंसान है उसके बाद कुछ।
उद्धाटन उपरांत लोगों ने बदायूं के तसलीम, आसिफ और कानपूर की रीना प्रवीण वारसी के बीच जबरदस्त मुकाबला का आनंद लिया। दोनों कलाकारों की टीम ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से उपस्थित जनसमूह को झूमने पर मजबूर कर दिया।कार्यक्रम इतना शानदार रहा कि दोनों कव्वालों के बीच मुकाबला सुबह छह बजे तक चला।
कार्यक्रम की शुरुआत तसलीम और आसिफ ने एक शायरी से करते हुए कहा कि बंद हुई आँखों के कई अरमान बांकि है, हमारी टूटती हुई सांसों में हिंदुस्तान बांकि है।
उसके बाद कहा कि सीता की रिफाकत है तो सब कुछ पास है, जिंदगी कहते है जिस को राम का बन – बास है।जिसे सुन दर्शक वाहवाही कर उठे।
रीना वारसी ने नज्म पेश करते हुए कहा कि जुबान में नाम तेरा – दिल में जुस्तुजूं तेरी, मेरी सदा से उभरती है आरजू तेरी, मेरे खुदा मेरे लहजे को पूर असर कर दे, की अहले वज्म से गुफ्तगू करती हूँ तेरी।वही कव्वाल तस्लीम – आसिफ ने कहा कि मेरे वतन की खुशहाली हो, हर आंगन में दिवाली हो।ऐसा करिश्मा मौला दिखा दे और दुश्मन को भी दोस्त बना दे।
इसके बाद तसलीम और आसिफ ने कहा कि उन पे कुर्बान हर ख़ुशी कर दी, जिंदगी नज्र – ए – जिंदगी कर दी.उसके बाद तसलीम ने कहा कि जर्रे को चट्टान को बना दे या अल्लाह, वहसी है इंसान बना दे या अल्लाह.हिन्दू मुस्लिम खाये एक थाली में, ऐसा हिंदुस्तान बना दे या अल्लाह।वही कव्वाला रीना परवीन वारसी ने नज्म पेश करते हुए कहा उदास आँखों से आंसू नही निकलते है, ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते है।
कार्यक्रम को सफल बनाने में मो मुद्दसिर नजर, अबु ओसामा, मो मशब, छोटू, मो सोहेल अहमद, मो अली अकबर, हसनैन मोहसीन, मो इनाम वारिश, मो अख्तर आलम, मो रजा वारिश, मो नफीस अहमद, मो नेहाल, मो मुज्जफर आलम, मो जावेद इकबाल, सरफराज आलम, अन्ना चाय वाले, असजद बिहारी, मो अबसार, मो आबिद, मो जाहिर, मो रब्बान, मो अब्दुर्रब, मो मुमताज, मुंतजिर सहित अन्य लोग रहें।