सिमरी बख्तियारपुर के प्रथम विधायक व खगड़िया लोकसभा के दो बार बनें सांसद
- आजादी के अमृत महोत्सव पर उद्धारक की बाट जोह रहा जिया बाबू का जमींदोज स्मारक
ब्रजेश भारती : सिमरी बख्तियारपुर (सहरसा) स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में सिमरी बख्तियारपुर के निवासियों का अहम योगदान रहा है। लेकिन अब भी कई स्वतंत्रता सेनानी गुमनामी के अंधेरे में है। इलाके के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जिया लाल मंडल इन्ही में से एक है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सिमरी बख्तियारपुर में उनके नाम पर कोई स्मारक या फिर संग्रहालय तक नहीं है। जियालाल मंडल आजाद भारत के सिमरी बख्तियारपुर के प्रथम विधायक एवं खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के दूसरे सांसद थे।
जन्म : बाबू जियालाल मंडल का जन्म यदुवंशी समाज में 05 मार्च 1915 को तत्कालीन मुंगेर ( वर्तमान सहरसा) जिला के सिमरी बख्तियारपुर के रंगिनिया टोला मे हुआ था। उनके पिता गुदर मंडल भी स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी दूत हुआ करते थे। इनके पूर्वज इस इलाके का जमींदार थे। लेकिन अंग्रेजो से बगावत के कारण कुछ ज़मीन छिन गए थे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनके घरों को आग के हवाले कर पुरे परिवार को जलाने का प्रयास अंग्रेजी हुकूमत ने किया था।
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सन 1942 के अंदोलन में जियालाल मंडल व उनके छोटे भाई अयोध्या मंडल को अंग्रेजों ने रेल पटरी तोड़ने, थाना में तोड़फोड़ व आगजनी सहित विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। लेकिन दिल में भारत मां को आजाद कराने का जज्बा जेल की सलाखें कहां रोक सकती थी। 15 अगस्त 1947 को आजादी बाद भी उन्होंने देश को आगे बढ़ाने के लिए राजनीति में कदम रख विधायक से लेकर सांसद तक का सफर तय कर नए भारत के निर्माण कदम से कदम मिलाए।
प्रारंभिक शिक्षा : जिया बाबू का प्रारंभिक शिक्षा सिमरी बख्तियारपुर के एक मात्र मध्य विद्यालय सरडीहा से शुरू हुई थी। वे काफी मेघावी थे। जिसकी वजह से चौथी कक्षा पास करने के बाद पांचवीं कक्षा में उन्हें स्कॉलरशिप दिया गया था। वो सरडीहा से मीडिल पास कर उससे आगे की शिक्षा के लिए मुंगेर जिला मुख्यालय की ओर रुख कर गए।लेकिन सिर्फ 15 वर्ष के उम्र में देशभक्ति से ओतप्रोत होकर कांग्रेस में शामिल हो अंग्रेजी को देश से निकाल आजादी के मुहिम में शामिल हो गए।
समाजसेवा के क्षेत्र में योगदान : 1934 मे बिहार में भयंकर भूकंप तथा कोसी की त्रासदी से त्रस्त था। जिसमे जिया बाबू सच्चे कृष्णवंशी के तरह पीड़ित- असहायों की मदद किए। जिया बाबू में करुणा, दया इस प्रकार भड़े थे कि सिर्फ 19 वर्ष के उम्र मे जिया बाबू देश के महान नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह के नजर मे आ गए। आगे देश भक्ति की ओर रुख कर गए।
कांग्रेस प्रतिनिधि : जिया बाबू कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप मे 1939 एवं 1950 मे भारतीय किसान महासभा के सचिव रहे। 1946 में सलखुआ हाई स्कूल शुरू किए एवं 1957 तक इसके सचिव रहे। 1950 में बख्तियारपुर थाना कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। वहीं चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य समिति मुंगेर के सदस्य के साथ एआईसीसी के सदस्य पद पर आसीन रहे।
भारत छोड़ो आंदोलन : 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जिया बाबू उग्र रूप से शामिल हुए एवं जिस तरह देश के सभी बड़े नेताओ को नजरबंद किया गया, उसी तरह जिया बाबू को भी 1 साल जेल मे नजरबंद रखा गया। सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड मुख्यालय के सिलालेख पर अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी की सूची में पहला नाम बाबू जियालाल मंडल का दर्ज है।
आजादी के बाद भी अग्रणी भूमिका : जब 1951-52 में पहली बार स्वाधीन भारत मे पहली बार बिहार विधान सभा का चुनाव हुआ तब कांग्रेस ने जिया बाबू को बख्तियारपुर विधानसभा (चौथम सहित) का उम्मीदवार बनाया। उनका मुकाबला अंग्रेजी शासन के नियुक्त विधायक सह तत्कालीन जमींदार चौधरी नजरुल हसन हुआ। जिया बाबू ने नजरूल हसन को बड़े अंतर से मात देकर एक बड़ा उलटफेर कर आजाद भारत में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई।
रिकॉर्ड मतों के अंतर से जीत दर्ज : पांच साल विधायक रहने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें बिहार की राजनीति से प्रमोट कर केन्द्र की राजनीति में शामिल होने के लिए 1957 में खगड़िया के लोकसभा क्षेत्र से सांसद का टिकट थमा दी। चुंकि 1952 में खगड़िया लोकसभा सीट कांग्रेस पार्टी हार गई इसलिए 57 में कांग्रेस इस सीट को हर हाल में अपनी झोली में देखना चाहते थे तो उन्होंने जिया बाबू को एमपी का टिकट दे जीत की जिम्मेदारी सौंप दी। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के निवर्तमान एमपी सुरेश मिश्र को भारत वर्ष में दुसरे सबसे बड़े मतों के अंतर से मात दी। उसके बाद फिर तीसरे आम चुनाव 1962 में पुनः वें विद्यानंद यादव को 61 हजार 69 वोट से मात दे कर लगातार दूसरी बार एमपी बनें।
शौक : जिया बाबू को बागबानी का शौक के साथ खेल कूद में फुटबॉल खेल को पसंद करते थे। इनडोर खेल में कार्ड खेलना उन्हें बेहद पसंद था। उनके पुत्र पशुपति मंडल बताते थे दिल्ली में फुर्सत के क्षणों में उनके साथ कांग्रेस के जाने माने नेता सीताराम केशरी कार्ड – कार्ड खेला करते थे।
नेहरू परिवार के करीबी : जिया बाबू पंडित जवाहर लाल नेहरू के बहुत करीबी थे। जब उन्होंने पहली बार सांसद बनें तो सबसे अधिक मतों का रिकॉर्ड जवाहर लाल नेहरू के नाम दर्ज हुआ था। दुसरे सबसे अधिक मतों का रिकॉर्ड जिया बाबू के नाम दर्ज होने पर वो पार्लियामेंट में बोले थे “हू इज जियालाल मंडल”… जिसके बाद जिया बाबू ने अपनी उपस्थिति उनके सामने दर्ज करा विश्वत लोगों में शामिल हो गए। यह सिलसिला इंदिरा गांधी के साथ तक रहा।
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जिया बाबू विधायक – संसद रहते क्षेत्र का बहुत विकाश करते थे। इस कारण से जिया बाबू आम – जन मे बहुत लोकप्रिय थे। लेकिन एक महान स्वतंत्रता सेनानी के जन्म व पुण्यतिथि पर भी याद नहीं किया जाता है जो दुर्भाय है। आज भी रंगीनियां गांव स्थित उनके स्मारक मिट्टी में जमीनदोज है। एक अदद स्मारक की चाह आजादी के अमृत महोत्सव पर है। लेकिन ना तो सरकार व ना ही किसी जनप्रतिनिधि ने इस ओर कोई सार्थक कदम उठाया।
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हालांकि वर्तमान मधेपुरा सांसद जदयू के वरिष्ठ नेता दिनेशचन्द्र यादव ने सलखुआ हाई स्कूल के प्रांगण में जिया बाबू व स्वतंत्रता सेनानी माठा गांव निवासी चुआ लाल मंडल की प्रतिमा लगा उनको श्रद्धांजलि देने का एक प्रयास किया गया। लेकिन सिमरी बख्तियारपुर की राजनीति से दूर हो जाने के कारण उनके स्मारक की ओर रुख नहीं कर सके।
निधन : 9 फरवरी 1973 को इस महान देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी सह राजनीतिज्ञ का सिर्फ 58 वर्ष की उम्र मे निधन हो गया। वो अपने पीछे एक पुत्र पशुपति मंडल व दो पुत्री उमा देवी व सुशीला देवी छोड़ चले गए। उनकी पत्नी मालती देवी का भी निधन 7 फरवरी 1997 में हो गया। दिवंगत उमा देवी का पौत्र आईपीएस चन्द्र प्रकाश रक्सौल के एएसपी है तो सुशीला देवी के पुत्र सहरसा जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष सुरेन्द्र यादव व वर्तमान अध्यक्ष पुत्रवधु किरण देवी है।
नोट : यह लेख मेरे द्वारा लिखित है, मैं ब्रजेश भारती, संपादक www.brajeshkibaat.com . जिया बाबू का पौता हूं।
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