चार बार विधायक रहे थे अब्दुल गफूर, 2015 में जीते थे राजद से, RLSP को दी थी मात
ब्रजेश भारती : सहरसा जिले का महिषी विधानसभा क्षेत्र दिवंगत विधायक डॉ अब्दुल गफूर का गढ़ कहा जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि डॉक्टर अब्दुल गफूर ने एक या दो नहीं, चार बार महिषी का विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया। डॉक्टर गफूर के निधन के बाद आरजेडी के सामने किसी मजबूत नए चेहरे की तलाश करने की चुनौती होगी। महिषी सीट पर वर्षों से ‘तीर’ चलाने के प्रयास में जुटी जेडीयू भी जीत के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहेगी। हालांकि बीजेपी भी इस बार अपनी नजर इधर दी है।
वर्तमान में आरजेडी से अब्दुल गफूर के पुत्र अब्दुल रज्जाक पूर्व बीडीओ गौतम कृष्ण सहित कई अन्य दावेदार इस सीट से आरजेडी की उम्मीदवारी की आस लगाए बैठे हैं। पूर्व बीडीओ गत विधानसभा चुनाव में अपनी धमाकेदार एंट्री दिखाई थी तब वे जाप के उम्मीदवार रहे थे। वहीं जदयू व भाजपा में भी कई दावेदार अपनी गोटी बैठाने की जुगत में है। एक सप्ताह में इस सीट पर प्रत्याशियों की तस्वीर साफ होने की संभावना जताई जा रही है।
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अगर बात करें पुराने दिनों की तो डॉक्टर गफूर साल 1995 में महिषी विधानसभा सीट से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए थे। तब वे जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। लालू प्रसाद यादव ने जब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का गठन किया तब गफूर उनके साथ हो लिए। आजीवन रहे साथ, अब्दुल गफूर साल 2000 में आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे। गफूर को जनता ने दूसरी बार भी विधानसभा भेज दिया।
बात साल 2005 के चुनाव में आरजेडी ने महिषी विधानसभा सीट से सुरेंद्र यादव को चुनाव मैदान में उतारा। लेकिन यादव आरजेडी की जीत का क्रम बरकरार रखने में असफल रहे। जेडीयू के गुंजेश्वर साह, सुरेंद्र यादव को हराकर विधायक निर्वाचित हुए। साल 2010 के चुनाव में आरजेडी ने फिर से डॉक्टर गफूर पर दांव लगाया और गफूर ने महिषी विधानसभा क्षेत्र से चुनावी बाजी जीतकर यह सीट फिर से आरजेडी की झोली में डाल दी।
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पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी उम्मीदवार गफूर ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के चंदन कुमार साह को हराकर जीत का चौका लगाया। एक बात जो सामने आई वो कि बीडीओ पद से त्यागपत्र देकर पहली बार चुनाव मैदान में उतरे पप्पू यादव पार्टी के गौतम कृष्ण ने पहले चुनाव में ही अपनी पहचान बना ली। वर्तमान में वे आरजेडी के टिकट के प्रबल दावेदार में एक माने जाते हैं। लेकिनक कहा जाता है कि अब्दुल गफूर यहां के जन जन से जुड़े नेता माने जाते थे। उनका निधन विगत दिनों हो गया था।
अगर अतीत के आईने में देखे तो गफूर से पहले महिषी में 1977 के विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी (जेपी) परमेश्वर कुंमर ने दिग्गज कांग्रेसी नेता लहटन चौधरी को मात दी थी। 1980 में कांग्रेस के लहटन चौधरी कांग्रेस (यू) के सत्य नारायण यादव और 1985 में लोक दल के देवानंद यादव को मात देकर विधानसभा में पहुंचे।
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साल 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल के टिकट पर युवा बाहुबली नेता वर्तमान में डीएम हत्याकांड में सजा काट रहे आनंद मोहन ने कांग्रेस के लहटन चौधरी को पराजित कर दो चुनाव से चले आ रहे जीत के सिलसिले पर ब्रेक लगा बिहार की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाई जो आज भी कायम है। महिषी विधानसभा क्षेत्र हमेशा उपेक्षित रहा है।
प्रसिद्ध संत बाबा कारू खिरहरी से लेकर मंडन मिश्र की इस धरती को आज भी उद्धारकों की आस है। कोसी की विनाशलीला से आज भी यहां के लोग 19 वीं सदी का जीवन जी रहे हैं। महिषी विधानसभा क्षेत्र के मतदाता बिहार विधानसभा चुनाव के तीसरे और अंतिम चरण में 7 नवंबर को अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट करेंगे। वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी। अब देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार कोई खेबनहार यहां की जनता का भाग्य बदलने में कामयाब होते हैं।
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