आम इंसान के शव यात्रा की तरह विधिवत सारी रस्में की गई पूरी, मुखाग्नि दे जलाई गई चिता
सिमरी बख्तियारपुर (सहरसा) धर्म के प्रति लोगों की आस्था आज भी अटूट है। इसका उदाहरण सोमवार को नगर परिषद क्षेत्र के पुरानी बाजार में देखने को मिला। यहां की एक बुजुर्ग महिला 2008 में एक शादी समारोह में जानें के दौरान लापता हो गई थी। जिसका आज पुतला बनाकर आम इंसान के तरह शव यात्रा निकाल कर दाह संस्कार किया गया। अब आगे श्राद्ध कर्म भी किया जाएगा।
क्या है मामला : पुरानी बाजार के रहने वाले (वर्तमान में पटना निवासी) स्वर्गीय कमलेश्वरी प्रसाद उर्फ बादशाह की पत्नी ललिता देवी 16 वर्ष पहले एक शादी समारोह में जानें के लिए निकली थी लेकिन वह लापता हो गई थी। उस वक्त ललिता देवी का उम्र करीब 65 वर्ष हुआ था। जिसके बाद उसके पुत्र ने गुमशुदा की रिपोर्ट पटना पुलिस में दर्ज कराया था लेकिन उसका कोई अतापता आज तक नहीं लगा।
उसके बाद परिजनों ने ललिता देवी को मृत समझ अपना जीवन यापन करने लगा। लेकिन परिजनों में इस बात कि कसक लगी रही कि ललिता देवी का संस्कार कर्म नहीं हुआ जो कि हिन्दू रिति रिवाज से होना चाहिए। वर्तमान में ललिता देवी का पुरा परिवार पटना सिटी के बेलवड़ गंज में रहता है। परिजनों ने गांव पुरानी बाजार आकर ललिता देवी का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया।
पुतला बना निकाली गई शव यात्रा : पुरानी बाजार पहुंच ललिता देवी के परिजनों ने सर्वप्रथम पुरोहितों के निर्देश के अनुसार कुश (घास) की एक मूर्ति तैयार की। कुश से तैयार शरीर पर पलाश के पत्ते लपेटा गया। बेल के एक बड़े से फल को सिर की जगह पर लगाया गया। फिर शक्ल पर केलाई के बेसन से अच्छी तरह लेप लगाया गया। जिसके उपर भेड़ के ऊन के काले टुकड़े से पूरे शरीर पर बेसन की मदद से चिपकाया गया। फिर आम इंसान के शवयात्रा की तरह विधिवत सारी रस्में पूरी की गई।
जिसके बाद अर्थी को पुत्रों सहित परिजनों ने कांधा देकर शव यात्रा निकाली गई जिसमें दर्जनों लोग शामिल हुए। परंपरागत परिवारिक श्मशान शव यात्रा पहुंचा। एकपढहा गांव से आए पुरोहित अरविंद झा ने वेदिक मंत्रों के साथ चिता को मुखाग्नि की प्रक्रिया शुरू किया। ललिता देवी के सबसे छोटे पुत्र अरविंद जयसवाल ने मुखाग्नि दी।
क्या कहता है हिन्दू धर्म का रिवाज : घर नहीं लौटने पर 12 साल बाद होता है दाह संस्कार। अयोध्या धाम के पंडित अर्जुन शात्री ने बताया कि हिंदू धर्म के अनुसार यदि कोई व्यक्ति घर से निकल कर कहीं चले जाते हैं और फिर वे वापस घर नहीं आते ऐसे में 12 साल के बाद उनका दाह संस्कार सहित श्राद्ध कर्म करने की प्रक्रिया का विधान किया गया है।
अगर घर से निकलने के बाद परिजन या ग्रामीण या कोई जान-पहचान के लोग उन्हें कहीं देख लेते हैं तो, फिर उस दिन से उनकी 12 साल की गिनती शुरू होती है। ऐसे में हिन्दू धर्म के अनुसार संस्कार कर्म जरूरी होता है। मान्यता है कि आत्मा को मोक्ष व शांति इस कर्म के बाद मिल जाती है। ललिता देवी का संस्कार कर्म, क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
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