जदयू ने कहा- फैसला दुर्भाग्यपूर्ण, पार्टी करेगी आंदोलन
- दोनों चरणों के चुनाव स्थगित होने के बाद प्रत्याशी है हताश
पटना : बिहार में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने 10 और 20 अक्टूबर को होने वाले नगरीय निकाय चुनाव को तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दिया गया है। दूसरी डेट बाद में जारी की जाएगी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद आयोग के अफसरों ने 8 घंटे बैठक की। इसके बाद यह निर्णय लिया।
इसके पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के लिए 20% आरक्षित सीटों को जनरल कर नए सिरे से नोटिफिकेशन जारी करें। साथ ही राज्य निर्वाचन आयोग से कहा गया कि वह मतदान की तारीख आगे बढ़ाना चाहे, तो बढ़ा सकता है। इस फैसले के साथ ही 10 और 20 अक्टूबर को होने वाली नगरपालिका चुनाव पर फिलहाल रोक लग गई है। फिलहाल, राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से इस संबंध में नया नोटिफिकेशन जारी होगा।
नगरपालिका चुनाव में बगैर ट्रिपल टेस्ट के पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया गया था। इसे चुनौती देते हुए सुनील कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही थी। गुरुवार को इस मामले पर आखिरी सुनवाई हुई थी और मंगलवार को इस पर फैसला सुनाया गया।
कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत बगैर ट्रिपल टेस्ट के ईबीसी को आरक्षण दे दिया। राज्य निर्वाचन आयोग सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन किए बिना ही चुनाव करा रहा था। इसको लेकर आयोग को हाईकोर्ट ने फटकार भी लगाई है।
28 और 29 सितंबर को इस मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई के बावजूद कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका था। निर्वाचन आयोग के विशेष कार्य पदाधिकारी ने बिहार के सभी डीएम सह निर्वाचन पदाधिकारी नगरपालिका को पत्र लिखकर कहा था कि हाईकोर्ट में चल रहे मामले से 10 अक्टूबर के चुनाव में शामिल प्रत्याशियों को अवगत कराया जाए। निर्वाचन के बाद हाईकोर्ट का निर्णय आने पर वह प्रभावी होगा।
पटना हाईकोर्ट की बेंच ने अपने आदेश में कहा- राज्य चुनाव आयोग, ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटों के रूप में मानते हुए फिर से चुनाव की अधिसूचना जारी करे। इसके बाद चुनाव कराया जाए। ये निर्देश सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आधारित है।
राज्य निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त और स्वतंत्र निकाय के रूप में अपने कामकाज की समीक्षा करे, वह बिहार सरकार के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है। बिहार राज्य सरकार स्थानीय निकायों, शहरी या ग्रामीण चुनावों में आरक्षण से संबंधित एक व्यापक कानून बनाने पर विचार कर सकती है, ताकि राज्य को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुरूप लाया जा सके।
बिना SC कोर्ट के मानकों को पूरा किए शुरू हुई चुनाव की प्रक्रिया : पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए मानकों को पूरा नहीं कर लेती है। 2010 में सुप्रीम कोर्ट में मानक तय कर दिए थे। आरोप है कि बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के मानकों को पूरा नहीं किया और नगर निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
सरकार की दलील- चुनाव कराने का फैसला सही : सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पटना हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई हुई। राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर के साथ सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने पक्ष सरकार की तरफ से अपना पक्ष रखा। बिहार सरकार ने कोर्ट में कहा कि चुनाव कराने का फैसला सही है। वहीं, याचिका दायर करने वालों की ओर से बहस करने वाले वकीलों का कहना था कि बिहार सरकार ने गलत फैसला लिया है। नगर निकाय चुनाव में आरक्षण में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अनदेखी की गई है।
सुप्रीम कोर्ट का यह है आदेश : सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अपने फैसले में कहा गया था कि स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार पहले एक विशेष आयोग का गठन सुनिश्चित करें। सरकार की ओर से गठित आयोग इस बात का अध्ययन करें कि कौन सा वर्ग वाकई में पिछड़ा है। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही उन्हें आरक्षण देना तय किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्य सरकारें इन शर्तों को पूरा नहीं करती, तब तक अगर किसी राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव होता है, तो पिछड़े वर्ग के लिए रिजर्व सीट को भी सामान्य ही माना जाए।
राज्य सरकार ने यह किया : चुनाव से पहले आयोग का गठन नहीं किया। दूसरा- ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग) को 20% अतिरिक्त आरक्षण दिया, जो ओबीसी के आरक्षण से अलग है। इसके बाद आरक्षण की सीमा 50% से ज्यादा हो गई।
आगे यह दो विकल्प होंगें।
अब चुनाव आयोग और सरकार के पास दो ही विकल्प बचते हैं। जिन सीट पर पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया गया है। उन सभी सीट को सामान्य सीट करते हुए फिर से नोटिफिकेशन जारी कर चुनाव की अगली तिथि जारी करे। या फिर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएं।
यानी दोनों ही स्थिति में तत्काल चुनाव नहीं हो सकेगा। हाईकोर्ट के फैसले के बाद जल्द ही राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से पत्र सभी डीएम को जारी किया जा सकता है। सुनवाई के समय हाईकोर्ट में मौजूद नगर निगम के जानकार सीनियर एडवोकेट कुमार मंगलम का कहना है कि हाईकोर्ट सीधे चुनाव पर रोक नहीं लगाई है। हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल खड़ा किया है। अति पिछड़ा वर्ग को आरक्षण बिना ट्रिपल टेस्ट के कैसे दिया गया।
हाईकोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि वार्ड मेंबर से लेकर मुख्य पार्षद तक का चुनाव सामान्य करके करा सकते है। कुमार मंगलम का कहना है की बिहार सरकार और फजीहत से बचना चाहती है तो सामन्य सीट करके फिर से नोटिफिकेशन जारी करके चुनाव कराए या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए।
जदयू ने कहा- फैसला दुर्भाग्यपूर्ण, पार्टी करेगी आंदोलन : हाईकोर्ट के इस फैसले पर सत्ताधारी जदयू ने विरोध जताया है। पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बिहार में चल रहे नगर निकायों के चुनाव में अति पिछड़ा आरक्षण को रद्द करने और तत्काल चुनाव रोकने का उच्च न्यायालय का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा निर्णय केन्द्र सरकार और भाजपा की गहरी साजिश का परिणाम है।
अगर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने समय पर जातीय जनगणना करवा कर आवश्यक संवैधानिक औपचारिकताएं पूरी कर ली होती तो आज ऐसी स्थिति नहीं आती। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार और भाजपा के इस साजिश के खिलाफ जदयू आंदोलन करेगा। शीघ्र ही पार्टी कार्यक्रम की घोषणा करेगी।
प्रत्याशी हैं हताश : यू तो हाई कोर्ट का फैसला दिन में ही आ जाने के बाद प्रत्याशी के बीच असमंजस बन गया था। सभी लोग अपने अपने तरीके से हाई कोर्ट के फैसले का समीक्षा कर तर्क दे रहे थे। लेकिन जब शाम में निर्वाचन आयोग की बैठक बाद जो पत्र आया तो उसके बाद प्रत्याशी में हताशा देखने को मिल रहा है।