हत्या बाद उग्र भीड़ को शांत कराने हेलीकॉप्टर से पहुंचे थे लालू प्रसाद यादव
डेक्स : समय के चक्र में जीवन रूपी पहिया हमेशा चलता रहता है। इसी क्रम में गत विधानसभा चुनाव का समय बीत अगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी का सुगबुगाहट तेज हो गई है। हर विधानसभा क्षेत्र में टिकट व दावेदार की चर्चा चल रही है। इस बीच आपको या यू कहें युवा पीढ़ी को पुरानी यादों से रू-ब-रू कराने के लिए आगे बढ़ते हैं।
बात करेंगे 80 के दशक की वह भी सीमांचल की राजनीति की पूर्णिया विधानसभा सीट से चार बार विधायक रहे वाम नेता अजित सरकार को 14 जून 1998 की शाम अपराधियों ने घेर गोली मार दी थी वह भी एक दो गोली नहीं पुरे 107 जिसका खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हुआ। हालांकि इनकी मौत बाद उनके पुत्र ने राजनीति से तौबा कर देश ही छोड़ दिया।
सीमांचल की राजनीति में तेजी से बढ़ रहा था वह नेता : बात साल 1980 की है जब पूर्णिया विधानसभा सीट से माकपा ने अपने युवा नेता अजित सरकार को उम्मीदवार बनाया था। अजित सरकार शहर के चर्चित होम्योपैथ डॉक्टर के बेटे थे। अजित सरकार का जन्म 1947 में बिहार के पूर्णिया में हुआ था। पूर्णिया और आसपास के इलाके को सीमांचल कहते हैं। क्योंकि यह इलाका नेपाल और पश्चिम बंगाल का सीमावर्ती क्षेत्र है।
सामंतवाद के खिलाफ थे अजित सरकार : सीमांचल की जमीन पर पले बढ़े अजित सरकार के मन में बचपन से ही सामंतवाद के खिलाफ नफरत की भावना पनप गई थी। बड़े होकर अजित सरकार जुझारू मार्क्सवादी बन गए। उन्होंने जमींदारों की जमीन कब्जाकर उसे गरीबों में बांटना शुरू कर दिया। गरीब लोग अजित सरकार को अजित दा कहकर बुलाते थे। बताया जाता है कि उस दौर में मकान का किराया छह सौ रुपये थे। घर का खर्च अजित सरकार की पत्नी माधवी चलाती थीं। माधवी एक सरकारी स्कूल टीचर थीं।
एक रुपये के सिक्के जुटाकर करते थे चुनाव प्रचार : अजित सरकार का दफ्तर पूर्णिया के झंडा चौक के पास था। चुनाव लड़ने की अजित सरकार की अनोखी शैली थी। वह चुनाव प्रचार के नाम पर एक गमछा बिछाकर बाजार में बैठ जाते और आने जाने वालों को कहते कि वे उनके गमछे में एक रुपये का सिक्का डाल दें। एक रुपये से ज्यादा डालने की इजाजत नहीं थी। कहा जाता है कि यही एक नोट एक वोट भी होता था वह आराम से चुनाव जीत जाते थे। अजित सरकार उन सिक्कों को लेकर घर लौटते और उनकी गिनती करते। इससे अनुमान लगा लेते की कम से कम उन्हें इतने वोट तो मिलेंगे ही।
किराए के मकान में रहते थे अजित सरकार : अजित सरकार लगातार चार बार पूर्णिया से विधायक बने। उस दौर में बिहार की राजनीति में बंदूक और संदूक का दौर था। बंदूक यानी बाहुबल और संदूक यानी धनबल। यानी जिस प्रत्याशी के पास गुंडे और पैसे होते थे नेता सांसद या विधायक बनता था। बिहार की ऐसी राजनीति में अजित सरकार का उदय एक अनोखी घटना थी। अजित सरकार चार-चार बार विधायक बनने के बाद भी अपने लिए कोई निजी संपत्ति अर्जित नहीं की थी। वे पूर्णिया के दुर्गाबाड़ी मोहल्ले में एक किराए के मकान में रहते थे।
अजित सरकार को मारी गई थी 107 गोलियां : अजित सरकार के उदय से पूरे पूर्णिया जिले के पूंजीवादी और सामंती लोग परेशान थे। 14 जून 1998 की शाम को पूर्णिया शहर के अंदर घूम रहे थे। तभी अपराधियों ने उन्हें घेर लिया। अपराधियों ने उनपर लगातार फायरिंग शुरू कर दी। अजित सरकार को 107 गोलियां मारी गई थी। इस निर्मम हत्या से साफ संकेत मिल रहे थे कि अजित सरकार के प्रति अपराधियों के मन में कितना गुस्सा और नफरत थी।
भीड़ को शांत करने के लिए पहुंचे थे तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव : अजित सरकार की हत्या के बाद पूर्णिया में हालात बेहद खराब हो गए। अजित सरकार के समर्थकों ने पूरे पूर्णिया शहर में विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिए। हालात खराब होते देख तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हेलीकॉप्टर से पूर्णिया पहुंचे। भरी भीड़ में लालू प्रसाद यादव पहुंचे और लोगों ने शांति बनाए रखने की अपील की। लालू के साथ अजित सरकार के बेटे ने अमित सरकार ने भी लोगों ने शांति बनाए रखने की अपील की। भीड़ के शांत होने पर आखिरकार अजित सरकार के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया।
देश से बाहर चले गए अजित सरकार के बेटे : अजित सरकार हत्याकांड में पूर्व सांसद सह जाप सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, राजन तिवारी और अनिल कुमार यादव को आरोपी बनाया गया था। इस मामले में पप्पू यादव को आठ साल जेल में भी बितानी पड़ी, लेकिन आखिरकार वे कोर्ट से बरी हो चुके हैं। इस हत्याकांड के बाद अजित सरकार के बेटे अमित सरकार जान का खतरा बताते हुए आस्ट्रिया में रहने लगे।
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