घोघसम पंचायत के दर्जनों कटाव पीड़ित विस्थापित होकर तटबंध पर कर रहें निवास
सिमरी बख्तियारपुर (सहरसा) नेपाल प्रभाग में लगातार हो रही बारिश व नेपाल के कोसी बैराज से छोड़े गए रिकॉर्ड पानी के डिस्चार्ज से सहरसा जिले के पूर्वी कोसी तटबंध के अंदर पानी के फैलाव से उत्पन्न बाढ़ की विभीषिका से प्रभावित सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के घोघसम पंचायत के वार्ड नंबर 4 के दर्जनों परिवार कोसी नदी के कटाव से बेघर होकर पूर्वी कोसी तटबंध के गेमरोहो गांव के समीप तटबंध किनारे विस्थापित का जीवन जी रहे हैं।
विस्थापन के बाद वैसे परिवारों के बीच प्रखंड का सीमा विवाद के वजह से सरकारी सहायता नहीं मिला। जब मीडिया में विस्थापित परिवार के संबंध में खबर आई तो वैसे परिवारों को राहत पहुंचाने का सिलसिला शुरू हुआ जो देर रात तक चला। दिन में पूर्व विधायक डॉ अरुण यादव एवं पूर्व सांसद चौधरी महबूब अली कैसर, विधायक युसूफ सलाउद्दीन ने राहत कीट प्रदान किया।
वहीं देर रात सिमरी बख्तियारपुर अंचलाधिकारी शुभव वर्मा, राजस्व अधिकारी खुशबू कुमारी अंचल कर्मीयों के साथ विस्थापितों के बीच पहुंच सुखा राशन वितरित किया। बतौर पदाधिकारी ने कहा कि 60 परिवारों के बीच सुखा राशन का वितरण किया गया है। उन्होंने कहा कि जहां जहां से जानकारी मिलती है बाढ़ पीड़ितों की हर संभव सहायता किया जा रहा है। फिलहाल प्रखंड क्षेत्र में दो स्थानों पर समुदायिक रसोई का संचालन किया जा रहा है।
यहां बताते चलें कि घोघसम पंचायत के वार्ड नंबर 4 में भीषण कटाव की वजह से दर्जनों परिवारों का घर नदी में विलीन हो गया। वो लोग गेमरोहो के समीप पूर्वी कोसी तटबंध के किनारे विस्थापित होकर जीवन यापन करना शुरू किया है। शुरू में प्रखंड क्षेत्र का हवाला देकर सिमरी बख्तियारपुर व महिषी अपना अपना पल्ला झाड़ते नजर आया।
क्योंकि ये विस्थापित सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड क्षेत्र के रहने वाले हैं जबकि वो वर्तमान में विस्थापित होकर महिषी प्रखंड क्षेत्र में रहने लगा था जिसके वजह से दोनों प्रखंड कर्मी व अधिकारी अपना अपना पल्ला झाड़ते नजर आया। वहीं जब मामला मीडिया में आया तो सबसे पहले महिषी अंचल की ओर से एक-एक पॉलिथीन सीट देकर अपना पल्ला झाड़ लिया। लेकिन लगातार मीडिया में खबर बनें रहने व स्थानीय नेताओं द्वारा जिला प्रशासन को मामला संज्ञान में देने के बाद विस्थापितों के बीच राहत पहुंचने लगा। हालांकि विस्थापितों के बीच शुद्ध पेयजल की समस्या अभी भी बरकरार है। देखने वाली बात होगी कि पीएचडी विभाग कब तक जागती है?
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