डेंगराही घाट में अनशन तो कठडुमर घाट पर हो चुका है जल सत्याग्रह आंदोलन
- हर प्रत्याशी चुनाव के समय करते हैं दोनों स्थानों पर पुल निर्माण की बात
ब्रजेश भारती : उत्तर बिहार का शोक कहे जाने वाले कोशी सहित विभिन्न नदियों को बांध कर निर्माण किए गए पूर्वी एवं पश्चिमी तटबंध के अंदर बसे लोगों का जीवन आज भी नरकीय बना हुआ है। मुलभूत सुविधाओं से वंचित यहां के लोगों को आज भी एक अदद पुल निर्माण सपना बना हुआ है।
जब-जब चुनाव का मौसम आता है हर पार्टी व प्रत्याशी फरकिया वासी को पुल निर्माण का सब्जबाग दिखाकर वोट ऐंठ फिर ठेंगा दिखा अगले चुनाव तक फिर नरकीय जीवन जीने के लिए छोड़ संसद व विधानसभा में चले जाते हैं। वर्तमान में यही सब्जबाग अभी सभी प्रत्याशी व दल दिखा पुल निर्माण की बात कर रहे हैं।
किसी के पास नहीं ठोस पुल निर्माण की निति : जो दो पुल निर्माण की बात अभी प्रत्याशी कर रहे हैं सिर्फ यह सब्जबाग है। किसी के पास ठोस व सार्थक निति नहीं है। जानकार की मानें तो दोनों स्थानों पर पुल निर्माण विधायक व सांसद के बुते की बात नहीं जब तक केंद्र व राज्य सरकार बड़े प्रोजेक्टों में इसे शामिल ना कर लें यहां पुल निर्माण संभव नहीं हो पाएगा। चुंकि ऐसा होता तो 1984 से शुरू पुल निर्माण की मांग कब पुरा हो जाता।
पुल निर्माण की लागत : जानकार की मानें तो डेंगराही घाट में एक हजार से 15 सौ करोड़ की लागत पुल व सड़क निर्माण में आएगी वहीं कठडुमर घाट पर पांच से छः सौ करोड़ की लागत पुल निर्माण कार्य में लगेगा। डेंगराही घाट पुल निर्माण के डीपीआर बनाने की बात कही गई लेकिन यह अभी ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है।
यादों के झरोखों में डेंगराही घाट पुल निर्माण अनशन : बीते 19 फरवरी 17 को सहरसा जिले के सलखुआ प्रखंड अंतर्गत डेंगराही घाट पर पुल बनाने की मांग को लेकर एक व्यक्ति द्वारा आमरण अनशन की शुरुआत हुई थी प्रतिदिन लोग जुटते चले गये और सात दिनों के अंदर इस अनशन में सैकड़ों लोग शामिल हो गये। आश्चर्य तो यह हुआ कि पुल की मांग को लेकर शुरू हुई इस भूख हड़ताल में महिला अनशनकारियों की संख्या पुरुषों की तुलना में तीन गुनी रही, इस आंदोलन की सकारात्मक पहल यह रही कि मांग के समर्थन में पूरे फरकिया के लोग एकजुट हो गये। अनशन स्थल पर रोज हजारों की संख्या में भीड़ जुटती चली गई।
पक्ष-विपक्ष के सांसद से लेकर विधायक तक वहां अपनी हाजिरी लगाते नजर आए 17 वें दिन डीएम भी अनशन स्थल पर पहुंचे और लोगों को बताया कि उन्होंने सरकार को प्रस्ताव भेज दिया है। सर्वे के लिए पटना से पुल निर्माण निगम के अभियंताओं की टीम आ गयी है। सर्वे के बाद डीपीआर बनेगा। सरकार स्वीकृति देगी और तब काम शुरू होगा। वही बीजेपी नेता प्रेम कुमार ने जूस पिला आन्दोलन समाप्त कराया था। अनशन समाप्त हो गया। लेकिन पुल निर्माण कार्य आज तक कहीं नजर नहीं आया है।
कठडूमर में जल सत्याग्रह : डेंगराही के अनशन के समाप्त होने के दूसरे दिन आठ मार्च 17 को सिमरी बख्तियारपुर के कठडूमर में ग्रामीणों ने जल सत्याग्रह व धरना शुरू कर दिया था। नदी में बांस गाड़ उसके सहारे लगभग दो दर्जन लोग पानी में अनवरत खड़े रहे। इससे अधिक लोग नदी के बीच मचान बना धरना पर बैठ गए। डेंगराही की तरह ही अफसर से लेकर नेताओं का जमावड़ा लगा, थोथे वादे किए गए। जाप सुप्रीमों पप्पू यादव ने जूस पिला आन्दोलन को समाप्त कराया। लेकिन यहां भी आज तक कुछ नहीं हुआ।
विकास से अछूता रहा है फरकिया का इलाका : यह इलाका बिहार के नक़्शे के बीच में होते हुए भी सदियों से फरक है। इसे नदियों का मायका कहते हैं, क्योंकि इस छोटे से इलाके से होकर सात छोटी बड़ी नदियां बहती हैं। अकबर के नवरत्नों में से एक टोडरमल जब पूरे भारत के जमीन की पैमाइश कर रहे थे तो यहां भी आए। मगर यहां की नदियों के चंचल स्वभाव की वजह से वे यहाँ भू पैमाइश का काम पूरा नहीं कर पाए। नक़्शे पर इस इलाके को उन्होंने लाल स्याही से घेर दिया और लिख दिया फरक-किया, यानी अलग किया। यही फरक-किया बाद में फरकिया हो गया। तब से यह इलाका आज तक फरक ही है।’’ फरकिया का यह इलाका आज भी मुलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित है. यहां के वाशिंदे आज भी प्रखंड अथवा जिला मुख्यालय से नहीं जुड़ पाये हैं।
पानी में कैद हैं फरकिया के लोग : तटबंध निर्माण के छह दशक बीतने के बाद भी फरकियावासी पानी के कैदखानों में ही बंद हैं। सबसे पहले चानन पंचायत के डेंगराही स्थित कोसी नदी की मुख्य धारा पर महासेतु का निर्माण कराया जाय। इससे तटबंध के भीतर बसे फरकियावासियों को काफी सुविधा होगी। साथ ही सहरसा मुख्यालय से खगड़िया मुख्यालय की दूरी घट जायेगी।
वही कठडुमर घाट के समीप इस इलाके के वासी आज भी दो नदी घाटों को पार कर आवागमन करते है। यहां पर पुल निर्माण से खगड़िया, दरभंगा एवं बेगूसराय जिले से सीधा जुड़ाव हो जाएगा। लोजपा के सुप्रीमो स्वर्गीय राम विलास पासवान के पैतृक गांव शहरबन्नी के रास्ते अलौली प्रखंड का सीधा कनेक्शन सहरसा से हो जाएगा। पीला सोना उपजाने के लिए अपनी अलग पहचान रखने वाले यहां के किसानों की जिंदगी बदल जाएगी।
पुल नहीं होने से क्या हैं परेशानी : बिहार का अभिशाप कही जाने वाली कोसी नदी के पूर्वी तट के पास स्थित चानन व कठडुमर घाट के अंदर रहने वाले निवासियों के यहाँ पुल नहीं होने के कारण कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। सालों से इन्हें शहर आने का लिए नदी को पार करने के बाद कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे अस्पताल ले जाने के लिए कोई इंतजाम नहीं है। यहां न सड़कें ठीक हैं और न बिजली आती है। बच्चों के पढ़ाई के लिए भी स्कूल नहीं है। स्कूल है भी तो शिक्षक नदारत रहते है।
स्थानीय लोगों के अनुसार अगर डेंगराही व कठडुमर घाट पर पुल का निर्माण हो जाता है तो जिला मुख्यालय आने जाने में दिक्कत नहीं होगी। रोजगार करने शहर जाने और आने में भी परेशानियों का सामना नहीं करना होगा। बीमार होने पर इलाज कराने में दिक्कत नहीं होगी। यहां के ए ग्रेड मक्का को अच्छा बाजार उपलब्ध होगा तो यहां के किसानों के दिन बदल जाएंगे।