76 सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा में कोरोना काल में चुनाव की सुगबुगाहट का दस्तक
ब्रजेश की बात : वैश्विक महामारी कोरोना के बीच इस बार बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की सभी तैयारी अंतिम चरण में है। किसी भी वक्त चुनावी बिगुल की रणभेरी बज सकती है। इस बीच सुबे सहित 76 सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा में चुनाव की सुगबुगाहट दस्तक दे रहा है।
सबसे अहम सवाल अभी से ही उठने लगा है कि इस बार होने वाले चुनाव में सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा चुनाव में क्या फिर से लालटेन जलेगा या चलेगा तीर वहीं सन ऑफ मल्लाह का नाव किनारा लेगी या फिर पिछले बार की तरह इस बार भी बीच मझधार में ही डूब जाएगी ?
सबसे पहले 2015 में हुए विधानसभा चुनाव पर एक नजर डालते हैं। राजद-जदयू गठबंधन के तहत हुए इस चुनाव में जदयू के दिनेशचंद्र यादव ने बाजी मारी थी। उन्होंने एलजेपी भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी चौधरी यूसुफ सलाउद्दीन को मात दी थी। लेकिन इस बार सब कुछ उल्टा है। वह गठबंधन भी नहीं रहा ना ही वह प्रत्याशी।
अब जरा 2019 के उपचुनाव पर नजर डालें तो पहली बार यहां से आरजेडी ने जीत का स्वाद चखा। आरजेडी के जफर आलम ने जेडीयू के डॉ अरूण कुमार को मात दी। वहीं मुकेश सहनी की पार्टी तीसरे नंबर पर रह अपनी धाक छोड़ जीत हार में अहम भूमिका निभाने का काम किया। इस बार मुकेश सहनी की भी नजर यहां होगी लेकिन गठबंधन में रहेंगे तो सिटिंग सीट परेशानी बनेगी।
वर्तमान हालात पर अगर बात करें तो आरजेडी के वर्तमान विधायक जफर आलम का सीटिंग सीट की वजह से लड़ना तय है वहीं जदयू से डॉ अरूण कुमार यादव का भी लड़ना तय माना जा रहा है। यानि मुकाबला उपचुनाव के समान होने की संभावना है लेकिन परिस्थिति उपचुनाव से अलग नजर आ रही है। इस परिस्थिति का आंकलन सभी के लिए अहम होगा।
किन्तु, परन्तु, को छोड़ दें तो पुराने बल्लेबाज ही नए पिच पर बैटिंग करेंगे। 338 मतदान केंद्र एवं 140 सहायक मतदान केंद्र पर 3 लाख 30 हजार 161 मतदाता है। यहां से चुनाव लड़ने वाले खिलाड़ी का भाग्य तय करेंगे। इस बार का चुनाव मतदाता एवं प्रत्याशी दोनों के लिए अलग है चुंकि कोरोना काल चल रहा है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या मतदाता फिर से लालटेन में तेल डाल आगे पांच साल जलने के लिए देगा या फिर तीर को निशाने पर लगा बाजी जीत लेगा।
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