बीपीएससी परीक्षा में 27 वां रैंक ला बढ़ाया सहरसा जिला का मान 

सहरसा से ब्रजेश भारती की रिपोर्ट :-

कहा गया है कि प्रतिभा किसी का मोहताज नहीं होता है। कड़ी मेहनत एवं कठिन परिश्रम से हर मुश्किल मंजिल मिल ही जाती है। 
आज एक शिक्षक पुत्र ने आज साबित कर दिया है कि एक छोटे से कस्बे से निकल कर भी आफिसर की कुर्सी पाई जा सकती है। 

हम बात कर रहे हैं सुबे बिहार में इन दिनों जारी बिहार लोक सेवा आयोग(बीपीएससी) परीक्षा में 27 वां रैंक लाने वाले अनंत कुमार की।

सहरसा जिले के सोनवर्षा राज प्रखंड के खगड़िया जिले के सीमा पर अवस्थित काशनगर गांव निवासी रिटायर्ड शिक्षक चितरंजन भगत के तीन संतानों में सबसे बड़े पुत्र अनंत कुमार है। जैसे ही परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ अचानक इस युवक ने समाज सहित परिजनों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। ध्यान जाना भी स्वाभाविक है क्योंकि उसने जो मुकाम हासिल किया है वह बहुत कम लोगों को नसीब होती है। 
ऐसा नहीं है कि उसने एक झटके में यह मुकाम हासिल किया है नसीब का कमजोर इस युवा ने अपने मेहनत के दम पर सफलता प्राप्त किया है। उसके एकलौते बहनोई सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के रंगिनियां गांव निवासी राजेंद्र भगत के पुत्र पेशे से शिक्षक विजय भारती कहते हैं कि वे शुरू से ही लगनशील व मेहनत के दिवाने रहे हैं लेकिन उनका लक काफी खराब रहा है गत कुछ प्रतियोगिता परीक्षा की बात करें तो जब वे कुछ अंकों से पिछड़ जाते थे तो हम लोगों को काफी दुख होता था लेकिन वे कहते थे सफलता मिलेगी चाहे समय जितना लगे। 

ऐसा नहीं है कि इससे पहले वह किसी क्षेत्र में कामयाब नही हो पाए। ” सतत विकास ‘पर एक पुस्तक के सफल लेखन के साथ N E T / J R F क्वालिफाइड कर चुके हैं। इतना ही नहीं पटना विश्वविद्यालय में लेक्चरर रह चुके हैं।

2015 में बिहार झारखंड ज्योग्राफिकल एसोसिएशन द्वारा ” युवा भूगोल वेत्ता पुरस्कार ” से नवाजे जा चुके हैं। अनंत कुमार की प्रारंभिक शिक्षा गांव से शुरू हो सहरसा के जेल कॉलोनी, हाई  स्कूल से मैट्रिक कर आगे बढ़ी। एमएलटी कालेज से इंटरमिडिएट करने के बाद वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे। पटना कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएशन करने के उपरांत एम ए  नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के करने के बाद पी जी डिप्लोमा इन रिमोट सेंसिंग बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से किया। वर्तमान में पीएचडी कर रहे हैं।
वे अपनी सफलता का श्रेय माता पिता के साथ परिजनों एवं गुरूजनों को देते हुए कहते हैं जिस प्रकार पिता जी सुदुर कोशी दियारा क्षेत्र के बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगाने का काम किया करते थे वह किसी प्रेरणा से कम नहीं था। कठीन परिश्रम से सफलता प्राप्त किया जा सकता है कठिनाई आती है लेकिन धैर्य रखने पर निश्चित सफलता मिलती है।