सावन मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को मनाया जाता है नाग पंचमी
सौर बाजार के दमगढ़ी, सोनवर्षा राज के मैना में लगता है भव्य मेला
ब्रजेश भारती (सहरसा): सहरसा हिंदू पंचांग के अनुसार नाग पंचमी सावन मास के शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को मनाया जाता है। आज पंचमी है, जिले में नाग पंचमी को लेकर हर्सोल्लास का माहौल है। जिले के सौर बाजार प्रखंड के दमगढ़ी व सोनवर्षा राज के मैना भगवती मंदिर में भव्य मेले का आयोजन किया गया है।
दमगढ़ी मां विषहरी स्थान मंदिर : सौर बाजार प्रखंड के दमगढ़ी गांव स्थित मां विषहरी स्थान करीब डेढ़ सौ साल से यह लोगों के आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां वर्षों पूर्व से ही मां भगवती की अराधना की जा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि तोमर वंश लोगों ने माता विषहरी को अपनी जमीन में जगह देकर भगवती के प्रति आस्था एवं विश्वास को अभी तक बनाये रखा है। इस मंदिर के पुजारी के रुप में कुम्हार जाति के लोगों को पुजारी बनाया। तबसे यह अद्भुत परंपरा कायम है।
अद्भुत इसलिए कि जाति रूपी वैमनस्य परंपरा यहांं कभी जन्म नहीं ले सका। ऐसी मान्यता है कि भगवती को चढ़ाये जाने वाले जल को किसी विषधर के काटे जाने के बाद पीड़ित को पिलाया जाता है तो उस व्यक्ति की जान बच जाती है। यहां आने वाले भक्तों की मनोकामना भी पूरी होती है।
मंदिर के पुजारी के अनुसार सोमवार, बुधवार व शुक्रवार को वैरागन का दिन होता है। उस दिन मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा भगवती को पूजा-अर्चना कर छागर की बलि चढ़ायी जाती है। नागपंचमी के मौके पर मंदिर परिसर में तीन दिवसीय मेला लगता है। इस दौरान श्रद्धालुओं की अच्छी खासी भीड़ उमड़ती है। यहांं श्रद्धालु सिर्फ कोसी क्षेत्र के ही नहीं बिहार से सटे नेपाल के तराई क्षेत्र के भी भक्त सालों भर पूजा अर्चना करने आते हैं। माता विषहरी दमगढ़ी की महिमा अपरंपार है। यहां आज भी बलि प्रथा कायम है।
सोनवर्षा राज, मैना भगवती मंदिर –
सोनवर्षा राज प्रखंड मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दूर एनएच 107 के किनारे स्थित परड़िया पंचायत अंतर्गत मैना गांव में मां भगवती की पौराणिक मंदिर स्थापित है। यह धार्मिक स्थल के साथ-साथ कई जिलों के लोगों का आस्था का केंद्र है। मां भगवती की पूजा मैना गांव में करीब 300 वर्ष पूर्व से चले आने का अनुमान लगाया जा रहा है।
वर्ष 1961 से नागपंचमी के मौके पर प्रति वर्ष यहां मेले का आयोजन किया जाता रहा है। इस दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना को लेकर जुटते हैं। ग्रामीणों की मानें तो मां विषहरा के प्रति आस्था इतना है की बहुत दिनों तक वर्षा नहीं होने की स्थिति में पानी को लोग तरसने लगते थे। तब आसपास के गांव का लोग वहां सामूहिक रूप से कमल पुष्प लेकर माता की पूजा-अर्चना करते थे। जहां माता की कृपा से अच्छी खासी वर्षा होती थी। जिससे किसानों का साथ-साथ माता की आस्था भी लोगों की अंतरात्मा खिल उठती थी।
वहीं ठेठ भाषा में एक ग्रामीण ने कहावत कही कि ”ओध दिवारी बोरने थान, मैना के देवी घर घर करलक पियान” सबसे पहले मां भगवती की पूजा वर्तमान मंदिर से पश्चिम गांव पर एक छोटे से कच्चे मकान में करने की बात ग्रामीण बताते हैं। करीब 50 वर्ष तक इसी कच्चे मकान में मां भगवती की पूजा होती रही। जिसके बाद करीब 1750 ई में वर्तमान भगवती मंदिर परिसर में एक कच्चे मकान में स्थापित किया गया। कुछ समय के बाद सोनवर्षा राज स्टेट के राजा हरिवल्लभ नारायण सिंह द्वारा पक्का मकान बनवाया गया था।
राजा हरिवल्लभ नारायण सिंह ने मां भगवती के नाम जमीन भी दिया। करीब 200 वर्षो तक राजा हरिवल्लभ नारायण सिंह के द्वारा निर्मित पुराने मंदिर में मां भगवती की पूजा अर्चना किया जाता रहा। 2002 ई में मां भगवती को नये व वर्तमान मंदिर में स्थापित किया गया, जहां पर अभी भी मां भगवती की पूजा हो रही है।
पहले होती थी बलि : मां भगवती मंदिर मैना में पहले बली प्रदान किया जाता था, ऐसा भी बताया जाता है कि बली प्रदान कुश से ही किया जाता था और बाद में तलवार से किया गया। वर्षो पूर्व बली प्रदान करने की प्रथा के विरुद्ध कुछ लोग का विरोध हो गया और गांव दो गुटों में हो गया। जिसमें एक गुट बलि प्रदान करने के पक्ष में थे तो दूसरा गुट बलि प्रदान करने के विरोध में थे। काफी समय तक इस बात को लेकर मैना गांव में काफी तनाव की स्थिति बनी रही।
बाद में दोनों गुटों की आपसी बैठक हुई और दोनों गुट बलि प्रदान नहीं करने के पक्ष में सहमति बनी। उसके बाद बलि प्रदान करने की प्रथा खत्म कर दिया गया। आज भी बलि प्रदान नहीं किया जाता है केवल परीक्षा करवा कर भेज दिया जाता है। ऐसी मान्यता अभी भी है कि जो जितने श्रद्धा भाव से मां भगवती की पूजा अर्चना करता है उसका मनोकामना उसी तरह से पूरी होती है।