पूर्व मुखिया पुत्र भी हादसे में जख्मी, गली सड़क से अचानक मुख्य सड़क पर ट्रेक्टर ले आया ड्राइवर

सहरसा – जिले भर में फर्राटे भरते अनियंत्रित गाड़ियां, असमय राहगीरों को मौत के आगोश में ले रहा है और जिम्मेदार प्रशासन कान में तेल डालकर मानों हादसे बाद आगे के हादसे का इंतजार में लग जाता है। लेकिन सड़क पर नियम कानून को ताक पर रख गाड़ी चलाते ड्राइवरों पर किसी तरह का एक्शन होता नजर नहीं आ रहा है। नतीजा मौत दर मौत।

मृतक युवक, कुणाल कुमार, फाइल फोटो

ताज़ा एक मामला जिले के सोनवर्षा राज से सौर बाजार जानें वाले सड़क मार्ग के भवटिया के समीप देखने को मिला जहां बाइक सवार दो ट्रेक्टर से टकरा गया जिसमें एक युवक की असमय मौत हो गई वहीं दूसरा गंभीर रूप से जख्मी हो पटना में इलाजरत हैं। मृतक युवक की पहचान बनमा ईटहरी थाना क्षेत्र के बोरबा निवासी दयानंद यादव के 25 वर्षीय पुत्र कुणाल कुमार के रूप में की गई जबकि जख्मी युवक की पहचान इसी गांव के पूर्व मुखिया मनोज यादव के पुत्र मंजीत कुमार के रूप में की गई।

प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो बाइक सवार कुणाल कुमार व मंजीत कुमार अपने बोरबा घर से सोनवर्षा राज के रास्ते सहरसा के लिए निकला। बाइक कुणाल चला रहा था। जैसे ही दोनों भवटिया गांव के समीप पहुंचा तो अचानक एक ट्रेक्टर ड्राइवर गाड़ी लेकर गली रोड से मुख्य सड़क पर आ गया। जबतक बाइक सवार कुछ समझ पाता बाइक की भिड़ंत ट्रेक्टर से हो गई। दोनों ट्रेक्टर में टकरा गंभीर रूप से जख्मी हो गया जिसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां कुणाल कुमार को मृत घोषित कर दिया।

हालांकि घटना की सूचना पर पुलिस घटनास्थल पर पहुंच ट्रैक्टर व चालक को हिरासत में ले लिया। मृतक युवक कुणाल कुमार को पोस्टमार्टम हेतु सदर अस्पताल सहरसा भेज दिया। वहीं पोस्टमार्टम उपरांत शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मृतक कुणाल अपने पीछे 23 वर्षीय पत्नी काजल देवी, 5 वर्षीय पुत्र अभिराज एवं 3 वर्षीय पुत्री सृष्टि कुमारी को छोड़ गया। मौत पर गांव में सन्नाटा पसर गया है और परिजनों का रो- रो कर बुरा हाल है।

बेसुध पत्नी मासूम बच्चों के साथ

आखिर कब तक मौत के मुंह में समाते रहेंगे लोग : जिस वक्त कुणाल व मंजीत घर से शहर के लिए निकला होगा, सोचा भी नहीं होगा कि एक ट्रेक्टर ड्राइवर उसकी मौत का कारण बन जाएगा। कुणाल के छोटे छोटे बच्चे का सिर से पिता का साया उठ गया व पत्नी असमय विधवा हो गई। अंग्रेजों के जमाने में बनाएं गए रोड रूल्स के प्रावधान के अनुसार चंद दिनों में ड्राइवर सलाखों के पीछे से बाहर आ जाएंगे, इन्श्योरेन्स कंपनी चंद रूपए परिवार को मुआवजा प्रदान कर सांत्वना दे देगा लेकिन मासूम को पिता का सांया व विधवा को पति का प्यार वापस नहीं दिला पाएगा।

तो सवाल उठता है कि फिर रफ्तार पर रोक की और क्यों नहीं कदम उठाया जाता है।‌ सड़क पर सिर्फ चुनाव के समय क्यों जांच पड़ताल किया जाता अन्य दिन क्यों नहीं ? नौसिखिया व बिना ड्राइवरी लाइसेंस सड़क पर मौत बन गाड़ी को दौड़ा रहे पर कब तक लगाम लगेगा यह यक्ष्य प्रश्न बना हुआ है । खैर…