Tenancy Law 2025: 2 नियम तोड़ दिए तो 1 साल में मकान पर खतरा, सपना होगा सच या बर्बाद

Agnibho

Tenancy Law 2025

भारत में मकान मालिक और किराएदार के बीच का रिश्ता काफी पुराना और संवेदनशील है। कई बार मकान मालिकों के मन में यह डर बना रहता है कि अगर कोई किराएदार उनके मकान में कई सालों तक लगातार रह ले, तो कहीं वह उस मकान पर अधिकार तो नहीं जमा लेगा। लोगों के बीच यह धारणा काफी प्रचलित हो चुकी है कि बारह साल तक किसी मकान में रहने पर वह किराएदार का हो जाता है।

लेकिन सच यह है कि यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। भारतीय कानून में किराएदार और मकान मालिक दोनों के हितों की रक्षा के लिए साफ प्रावधान बनाए गए हैं। इस लेख में हम इसी विषय की पूरी जानकारी देंगे कि आखिर कितने साल बाद किराएदार को कोई अधिकार मिल सकता है या नहीं, और मकान मालिक को कौन-कौन से कानूनी कदम उठाने चाहिए।

कितने साल बाद किराएदार का हो सकता है मकान – क्या कहता है कानून

लोगों में धारणा बनी हुई है कि कोई भी किराएदार अगर 12 साल तक किसी प्रॉपर्टी पर बना रहता है तो वह मकान उसकी मिल्कियत में चला जाता है। दरअसल, यह नियम एडवर्स पजेशन नामक कानून पर आधारित है, लेकिन यह हर स्थिति में लागू नहीं होता।

एडवर्स पजेशन का मतलब होता है कि कोई व्यक्ति किसी जमीन या मकान पर बिना मालिक की अनुमति के लगातार 12 साल तक कब्जा कर ले और उस दौरान मालिक ने उस पर कोई कानूनी दावा ना किया हो। ऐसी स्थिति में कानून उस कब्ज़ाधारी को उस संपत्ति का हक दे सकता है।

लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि अगर कोई व्यक्ति किराए का भुगतान करते हुए किरायेदार के तौर पर रह रहा है, तो एडवर्स पजेशन का दावा नहीं बनता। इसका मतलब यह है कि जब तक किराए पर रहने वाला व्यक्ति किराया देता है और लिखित रेंट एग्रीमेंट के तहत रह रहा है, तब तक उसके पास उस संपत्ति पर कोई मालिकाना हक नहीं बनता।

किरायेदारी कानून और उनके प्रावधान

भारत सरकार ने देशभर में किरायेदारी संबंधी मामलों को अधिक पारदर्शी और कानूनी बनाने के लिए मॉडल टेनेंसी एक्ट (Model Tenancy Act) प्रस्तावित किया है। इसके अनुसार, मकान मालिक और किराएदार – दोनों के लिए कुछ अहम नियम तय किए गए हैं।

इस एक्ट के अंतर्गत सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि किराए पर दी गई किसी भी संपत्ति के लिए लिखित एग्रीमेंट जरूरी हो, जिसमें किराया, अवधि, शर्तें और दोनों पक्षों के अधिकार दर्ज हों।

हर राज्य के पास मॉडल टेनेंसी एक्ट को लागू करने का अधिकार है। कई राज्यों ने अपने-अपने ढंग से इसे अपनाया है, जैसे कि:

  • राज्य स्तरीय ‘रेंट अथॉरिटी’ बनाई गई है जहाँ किराए विवादों को हल किया जा सके।
  • किराया न मिलने की स्थिति में मकान मालिक बेदखली की प्रक्रिया तेज़ी से शुरू कर सकता है।
  • एग्रीमेंट खत्म होने के बाद यदि किराएदार मकान खाली नहीं करता है, तो उसे अधिक किराया देना होगा।
  • मकान मालिक बिना किराएदार की मर्जी से जबरन किराया नहीं बढ़ा सकता।

इन प्रावधानों से मकान मालिकों को यह भरोसा हुआ है कि उनका मकान सुरक्षित रहेगा और समय पर खाली हो सकेगा।

क्या सुप्रीम कोर्ट की राय है इस पर?

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर साफ कहा है कि अगर किसी प्रॉपर्टी पर किराएदारी का लिखित या मौखिक एग्रीमेंट है और किराया नियमित तौर पर दिया जा रहा है, तो वह किरायेदार संपत्ति का मालिकाना हक नहीं जता सकता।

अगर कोई व्यक्ति एग्रीमेंट खत्म होने के बाद बिना अनुमति के मकान पर कब्ज़ा करता है और लगातार मकान मालिक से कोई संपर्क नहीं करता, तब जाकर ‘एडवर्स पजेशन’ का मामला बनता है। लेकिन ऐसे हालात में भी अदालत सभी तथ्यों को बारीकी से देखती है।

इसलिए यह धारणा कि “12 साल रहने से मकान मिल जाएगा” केवल उन मामलों में लागू हो सकती है, जहाँ कोई कब्जा बगैर अनुमति के हुआ हो – न कि वैध किरायेदारी में।

मकान मालिक क्या करें, ताकि विवाद न हो

कई बार मकान मालिक रेंट एग्रीमेंट नहीं बनवाते या सिर्फ मौखिक समझौते के आधार पर किरायेदार रखते हैं। ऐसी स्थिति में अगर किसी विवाद की नौबत आए तो मुश्किल बढ़ सकती है।

इसलिए मकान मालिकों को सलाह दी जाती है कि:

  • किरायेदार के साथ हर बार लिखित और स्टांप पेपर पर रेंट एग्रीमेंट करें।
  • उसमें किरायेदारी की अवधि, किराया राशि, शर्तें वगैरह साफ़-साफ़ दर्ज करें।
  • समय-समय पर रिन्यूअल करते रहें और करार की कॉपी को सुरक्षित रखें।
  • किराया नकद देने की बजाय बैंक ट्रांसफर या खाते में जमा करवाना बेहतर होता है जिससे प्रमाण रहता है।

इन बातों का पालन करने से भविष्य में मकान मालिक को प्रॉपर्टी पर अपना अधिकार सिद्ध करने में कोई कठिनाई नहीं आएगी।

निष्कर्ष

यह कहना बिलकुल गलत है कि “12 साल तक मकान में रहने से किरायेदार मालिक बन जाएगा।” अगर किरायेदार नियमित किराया दे रहा है और कानूनी रेंट एग्रीमेंट बना हुआ है, तो उसका कोई भी मालिकाना हक नहीं बनता। मकान मालिकों को सिर्फ यही सुनिश्चित करना है कि वे पूरे दस्तावेज और रेंट एग्रीमेंट से काम लें, ताकि किसी भी प्रकार का कानूनी विवाद भविष्य में न पैदा हो। सरकार द्वारा बनाए गए किरायेदारी कानूनों का पालन करके दोनों पक्ष सुरक्षित रह सकते हैं।

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