पटना। इस साल बिहार में मानसून की 40 प्रतिशत कमी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। लगातार घटती बारिश से न केवल खेती प्रभावित हो रही है, बल्कि खाद्य सुरक्षा पर भी खतरा मंडराने लगा है। राज्य भर के किसान अब पानी की कमी से जूझते हुए खेतों की सिंचाई के लिए अतिरिक्त खर्च उठाने को मजबूर हैं।
पटना के पुनपुन इलाके के किसान राजेंद्र रविदास ने बताया कि जून का महीना बिना पर्याप्त बारिश के बीत गया। मजबूरी में उन्हें बोरिंग मशीनों से सिंचाई करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा, “बोरिंग से पानी मिल जाता है, लेकिन दो दिन में खेत फिर सूख जाते हैं। पानी का स्तर गिर गया है, जिससे कई बोरिंग भी खराब हो चुके हैं। अब सिंचाई की लागत प्रति बीघा 400 रुपये तक पहुंच गई है।”
पुनपुन के ही मुन्ना कुमार, जो कांट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए 15 लोगों के परिवार का भरण-पोषण करते हैं, ने भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “अगर बारिश यूं ही घटती रही, तो बोरवेल से सिंचाई करना मुश्किल हो जाएगा। धान के पौधे तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन सिंचाई खर्च और बढ़ेगा।”
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अब तक राज्य में सिर्फ 123.5 मिमी बारिश हुई है, जबकि जुलाई के पहले सप्ताह तक औसतन 201 मिमी बारिश होनी चाहिए थी। हालांकि औरंगाबाद, नवादा और गया जिलों में औसत से 20% अधिक वर्षा दर्ज की गई है, लेकिन 13 जिलों — पूर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, दरभंगा और बेगूसराय सहित — में अब भी भारी बारिश की कमी बनी हुई है।
मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि 3 जुलाई से 10 जुलाई तक वर्षा सामान्य से कम ही बनी रहेगी। हालांकि 11 से 17 जुलाई के बीच हालात में कुछ सुधार होने की संभावना है।
सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए डीजल अनुदान योजना शुरू की है। इसके तहत किसानों को प्रति लीटर 75 रुपये या प्रति एकड़ 750 रुपये की दर से सहायता दी जा रही है। अधिकतम 8 एकड़ तक के लिए यह सब्सिडी दी जाएगी। धान की रोपनी और जूट की फसल की सिंचाई करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 1,500 रुपये तक दो बार सिंचाई के लिए अनुदान मिलेगा।
बारिश की चिंताजनक स्थिति के बावजूद अधिकारी खाद्यान्न उत्पादन को लेकर आशावादी हैं। कृषि मंत्री ने बताया कि कृषि वर्ष 2024-25 के लिए 226.807 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14.73 लाख मीट्रिक टन अधिक है। उन्होंने इस वृद्धि का श्रेय नीतिगत सुधारों और किसानों की मेहनत को दिया।
बिहार के किसानों के सामने चुनौती बड़ी है, लेकिन वे उम्मीद और सरकार की योजनाओं के सहारे संकट से उबरने का प्रयास कर रहे हैं।