सहरसा के सुपर बाजार स्थित प्रमंडलीय पुस्तकालय सभागार में कार्यक्रम आयोजित

सहरसा से अतिथि लेखक सह कवि मुख्तार आलम की कलम से रिपोर्ट : सहरसा के सुपर बाजार स्थित प्रमंडलीय पुस्तकालय सभागार में साहित्यिक, सांस्कृतिक आ सामाजिक संस्था ‘मैथिली शब्द लोक’ द्वारा ‘समकालीन मैथिली कवितामें कथ्य’ विषय पर परिचर्चा एवं भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

परिचर्चा में विषय प्रवेश करते हुए कार्यक्रम के संयोजक व संचालक मुख्तार आलम ने कहा कि समकालीनता का मापदंड क्या है और कहाँ से माना जाय। क्या राजकमल चौधरी से, यात्री से या फिर किशुन जी के नई कविता आंदोलन से। इसके साथ ही कथ्य कहाँ से आता है, कथ्य का क्या प्रयोजन है। कवि की दृष्टि कैसे वैश्विक होती है? उपरोक्त तथ्यों पर संचालक ने विस्तार से अपनी बातें रखीं।

डॉ निक्की प्रियदर्शिनी ने श्रोता का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि समकालीन मैथिली कविता में जो कथ्य आया है उसे मैथिली रचनाकार कैसे आगे बढाए हैं। उसमें खासकर कवयित्री किस रूप में इस कथ्य को आगे बढ़ाकर विस्तार दी हैं। इस पर अपनी बात रखीं। टी.पी.कॉलेज मधेपुरा के व्याख्याता डॉ सुमन कुमार झा ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैथिली कवियों की दृष्टि वैश्विक घटनाओं पर जाना चाहिए।

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित बहुचर्चित साहित्यकार तारानंद वियोगी ने कहा कि कथ्य की कमी नहीं है। कथ्य और शिल्प से कविता बनती है। उन्होंने समकालीनता को परिभाषित करते हुए कहा कि समय के प्रवाह में लिखी गयी कविता वर्तमान में प्रासंगिक है, वही समकालीन है। उन्होंने कहा कि कविता में जो विचार आते हैं उनका जो दार्शनिक अभिप्राय होता है, वह कथ्य है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ख्याति प्राप्त भाषा विचारक डॉ राम चैतन्य धीरज ने कहा समकालीन मैथिली कविता में कथ्य के तीन आयाम हैं-अस्तित्व, संघर्ष और मुक्ति। जब अस्तित्व का नया सिद्धांत, अस्तित्व के लिए संघर्ष और जीवन के लिए अनुकूलन के उद्देश्य सारगर्भित हुआ। तब इस सिद्धांत को सहित्य में महत्व दिया गया। यह उसी समय से होना प्रारम्भ हुआ।

जन सामान्य के लिए संघर्ष यात्री जी की कविता का कथ्य है तो अस्तित्व निजता के लिए संघर्ष राजकमल की कविता का उत्स है। संघर्ष मुक्ति के लिए होता है जो दोनों ने किया। वर्तमान कविता में दर्शन का अभाव है जो कि कविता को दृष्टि देता है। मार्क्स का वर्ग संघर्ष का दृष्टिकोण मैथिली साहित्य में वर्ण संघर्षक रूप ले लिया है जो किसी उद्देश का संवाद नहीं करता है। अब क्वांटम फिजिक्स, परा भौतिकी अवधारणा वेदांत की ओर उन्मुख हुआ।

इसी वैज्ञानिक सोच का मैथिली साहित्य में अभाव रहा है जबकि मिथिला का दर्शन परम्परा ज्ञान के परम्परा को विकसित करता है। कथ्य में अब मिथिला अपना इतिहास का खोज कर रहा है।

दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए उपन्यासकार कुमार विक्रमादित्य ने साहित्यकारों से मैथिली के विभिन्न आयामों पर पढ़कर लेखन का आह्वान किया। उन्होंने ने कहा बिना पढ़े कथ्य की व्यापकता असम्भव है। उन्होंने हाल में प्रकाशित उपन्यास ‘मास्टरबा’ वियोगी जी को भेंट की। वरिष्ठ कवि और हिंदी के कथाकार मुक्तेश्वर प्रसाद सिंह ने मैथिली में कविता पाठकर सबको आश्यर्च चकित किया।

इसके साथ ही गीतकार नवल कुमार मिश्र, हरिशंकर तिवारी, जयंत चौधरी, विवेकानद सिंह, शैलेन्द्र स्नेही, गोपीनाथ कृष्णा, कुमार विक्रमादित्य, सुमन शेखर आजाद, दिलीप कुमार झा दर्दी, कृष्ण कुमार क्रांति, सुपौल से आये विमल जी मिश्र, रघुनाथ मुखिया, मैथिली के शिक्षक सह साहित्यकार कुमार कौशल और रामकुमार ठाकुर, प्रियांशु रंजन, तारानंद वियोगी, रामचैतन्य धीरज और आयोजक मुख्तार आलम ने अपनी कविताओं से दर्शकों को खूब झुमाया और वाहवाही लूटी। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन मो मुख्तार आलम ने किया।