• इससे पहले सूर्यदेव की अति प्राचीन दो मूर्तियां चुकी है मिल, वर्तमान में चल रहा नए मंदिर का निर्माण

ब्रजेश भारती : उत्तर बिहार का मिनी बाबा धाम के नाम से मशहूर सहरसा जिले का सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड अन्तर्गत बसवाहाट कांठो स्थित प्रसिद्ध बाबा मटेश्वर धाम मंदिर में नींव खुदाई के दौरान मूर्ति मिलने का सिलसिला लगातार जारी है। आज शनिवार को सुबह सुबह खुदाई के दौरान देवी सरस्वती की एक अति प्राचीन मूर्ति मिला है। इससे पूर्व यहां दो सूर्य देव एवं एक नंदी का पैर की मूर्ति मिल चुकी है।

शनिवार को मिला देवी सरस्वती की मूर्ति

शनिवार सुबह सुबह मिले देवी सरस्वती की मूर्ति के संबंध में जानकारी देते हुए कांवड़ संघ के अध्यक्ष मुन्ना भगत ने जानकारी देते हुए बताया कि सुबह सबेरे जब निर्माणाधीन मंदिर परिसर के नींव से निकले मलवे इधर उधर की जा रही थी तो यह देवी सरस्वती की मूर्ति पर नजर पड़ी है। मिले मूर्ति को सुरक्षित बाहर निकाल रखा गया है। मूर्ति देखने के लिए लोग आ जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस बात की जानकारी न्यास समिति के अध्यक्ष पूर्व विधायक डॉ अरूण कुमार यादव को दी गई है।

शुक्रवार को दुसरी बार मिला था सूर्यदेव की मूर्ति

वहीं उन्होंने बताया इस संबंध में हेरिटेज सोसाइटी पटना को भी जानकारी दी गई है। मुन्ना भगत ने बताया कि आज से ठीक एक सप्ताह पहले शनिवार को ही भगवान सूर्यदेव की अति प्राचीन मूर्ति मिली थी। उसके बाद एक दिन पहले शुक्रवार को दुबारा सूर्य देव की दुसरी मूर्ति मिली थी। यहां लगातार मूर्ति मिलने का सिलसिला जारी है।

नंदी का पैर

यहां बताते चलें कि वर्तमान समय में बाबा मटेश्वर धाम मंदिर का नव निर्माण कार्य चल रहा है। करीब पांच करोड़ की लागत से मंदिर निर्माण के लिए कुछ दिन पहले नींव की खुदाई की गई थी। शिलान्यास उपरांत नींव ढ़लाई एवं पिलर निर्माण कार्य चल रहा है। इसी दौरान नींव से निकले मिट्टी, ईट, पत्थर के मलवे से मूर्ति मिल रही है। अब तक दो सूर्यदेव, एक देवी सरस्वती, एक नंदी का खूर सहित छोटे बड़े पत्थर के सिलपट मिल चुके हैं।

मिला शिलापट

जानकार बताते हैं कि बाबा मटेश्वर धाम मंदिर का इतिहास बहुत प्रचीन है। वेद पुराण में मंदिर की चर्चा है। यहां जो शिवलिंग है वह पाताल लोक से जुड़ा हुआ है। एक बार शंकराचार्य यहां पदार्पण कर चुके हैं उन्होंने दुनिया के अद्भुत शिवलिंग में एक शिवलिंग यहां का बताया था। यूं तो यहां सालों भर पूजा अर्चना होती है लेकिन सावन मास में लाखों श्रद्धालु मुंगेर के छर्रापट्टी से जल भर कर अर्पण करते हैं।

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