16 फरवरी को हैं सरस्वती पूजा, कोरोना काल बाद पहली बार होगा धुमधाम से पूजा

ब्रजेश भारती : सिमरी बख्तियारपुर (सहरसा) वैश्विक महामारी कोरोना के बाद देश में लगे लॉकडाउन उपरांत अनलॉक के बाद पहली बार सरस्वती पूजा धुमधाम से मनाया जाएगा। विगत दस माह बाद पहली बार 16 फरवरी को होने वाले सरस्वती पूजा को लेकर बड़े पैमाने पर सरस्वती प्रतिमा का निर्माण कार्य शहर से लेकर ग्रामीण स्तर चल रहा है।

लॉकडाउन में शिल्पकारों का निवाला छिनने के बाद इस नये साल में रोजी-रोटी की आस इस पूजा से जगी है। चारों तरफ सरस्वती पूजा की तैयारी जोरों पर है। विद्या की देवी मां सरस्वती जी की मूर्ति बनाने को लेकर मूर्तिकारों के आमजनों को ऑर्डर बड़े पैमाने पर मिलने लगे है। बड़े पैमाने पर ऑर्डर के मिलने से उनके चेहरे पर रौनक लौटने लगी है।

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मूर्ति बनाने की ऑर्डर मिलते हीं मूर्तिकार जी जान से इस काम में जुटे हुए हैं। जिससे आर्थिक रूप से सबल होने की उम्मीद जग गई है। क्षेत्रों में जिधर नजर पड़ती उधर मूर्ति बनाने में मूर्तिकार जोरशोर से लगे हुए हैं। कुल मिलाकर चारों तरफ मूर्ति ही मूर्ति बनते हुए दिख रहे हैं।

कोरोना काल ने बेरोजगार बना दिया था शिल्पकारों को : शिल्पकारों में मूर्तिकारों की मानें तो बीते वर्ष 2020 में कोरोना संकट के कारण पूरे साल एक भी मूर्ति बनाने का ऑर्डर नहीं मिला था। विश्वकर्मा पूजा, गणेश पूजा, कृष्णाष्टमी, दुर्गा एवं काली पूजा में मूर्ति बनाने का एक भी ऑर्डर मूर्तिकारों को कोरोना काल के कारण नहीं मिल सका। जबकि मूर्ति व्यवसाय से हीं पारिवारिक गाड़ी उनकी चलती आ रही है। जिस कारण उनकी रोजगार ठप हो गया था। इससे उनकी जीविकोपार्जन पर पूरे साल संकट छाया रहा। हाल यह रहा कि आर्थिक संकट से जूझने लगे। हुनर रहने के बावजूद वे अपने को बेरोजगार समझने लगे थे।

सरकारी मरहम नहीं दूर कर पा रही मूर्तिकारों की पीड़ा : मूर्तिकारों की मानें तो वह बचपन से मिट्टी हीं ढोते हुए आ रहे हैं। जो कि मूर्ति को वे आकार और सजीव रूप देते हैं। उस मूर्ति के आगे सभी सिर झुकाते हैं। बावजूद उनका जीवनयापन किसी तरह चल रहा है। जबकि एक मूर्ति को बनाने में कई दिनों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उसे वे मिट्टी व रंगों के संयुक्त मेल से अद्भुत कला से मनमोहक मूर्ति बनाते हैं। कहते हैं कि उनके लिए न तो सरकार और न हीं कोई योजना आ रही है। बनमा ईटहरी प्रखंड के मकदमपुर गांव निवासी मूर्तिकार रोहित पंडित तथा श्रवण कुमार सहित अन्य मूर्तिकारों का कहना है कि उनके जीवन में खुशहाली नहीं रहती है, आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है। जबकि मूर्ति बनाने की कला उनके रोजी रोटी की जरिया है।

पूजा के लिए बनाते हैं देवी-देवताओं की मूर्ति : दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, गणेश पूजा, विश्वकर्मा पूजा सहित दीवाली के दिनों में दीपक व मूर्तियां बनाते हैं। बाकी के दिनों में कोई काम नहीं होता। जो कि इन खाली दिनों में घर पर बैठना पड़ता है।

मूर्तिकार के बच्चे बेहतर शिक्षा लाभ से रहते वंचित : मूर्तिकारों की मानें तो आर्थिक तंगी के चलते उनके बच्चे बेहतर शिक्षा के लाभ से वंचित रहते हैं। कम उम्र में बच्चे काम करना शुरू कर देते हैं। उन्हें इस बात से संतोष होता है कि इसी से उनकी परंपरा व संस्कृति जिंदा है। वहीं मूर्तिकारों की हमेशा मांग रहती है कि उनकी मजदूरी बेहद कम होती है। मूर्ति व शिल्पकला को बढ़ावा देने वाले मूर्तिकारों को सरकारी योजनाओ का लाभ मिले ताकि आर्थिक रूप से विकसित हो सके। बावजूद इन पर सरकारी तंत्र का ध्यान नहीं पड़ती है। लिहाजा पूर्वजो की भांति वे अपना जीवनयापन करते आ रहे हैं।