प्रभात खबर रिपोर्टर आयुष कुमार की विशेष पड़ताल अनुमंडलीय अस्पताल सिमरी बख्तियारपुर से : समय रात के 10 बजकर 30 मिनट पर.….!

बिहार सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के बेहतर होने के लाख दांवे कर ले परंतु जमीनी हकीकत वादों से कोसो दूर है।

ताजा मामला सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल का है। सोमवार देर रात्रि जब ये संवाददाता अनुमंडलीय अस्पताल पहुंचे तो अस्पताल में डॉक्टर से लेकर नर्स तक मरीजो की चिंता से मुक्त आराम करते नजर आये। वही मरीजो का हाल सबसे बुरा दिखा।

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लगभग दो दर्जन से ज्यादा बंध्याकरण का ऑपरेशन कर चुके मरीज इस कंपकंपाती ठंड में जमीन पर खुले बरामदे में रात गुजारते दिखे। दर्द और ठंड से परेशान यह मरीज जैसे – तैसे रात गुजार रहे थे। वही मरीजो के परिजन जग कर मरीज को आवारा कुत्तों से बचाने के लिए पहरेदारी करते नजर आये।

इस संबंध में अनुमंडलीय अस्पताल उपाधीक्षक डॉ एन के सिंहा ने कहा कि मरीजो को तिरपाल उपलब्ध करवाया गया था। परन्तु यह जमीनी हकीकत नहीं थी आप तस्वीरों में भी देख सकते हैं कि कहीं कोई तिरपाल नजर नहीं आ रहा है।

● मजबूरी है साहेब : साहेब, किसी को कोई फर्क नही पड़ने वाला है बरामदे में ठिठुर रहे है डॉक्टर साहब सोए है कुछ सुविधा उपलब्ध नही है।

उक्त बातें सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल में इलाजरत सरबेला निवासी सत्तो साह की पत्नी राजमुनि देवी के परिजनों ने कही। गोरियारी निवासी अमरदीप कुमार की पत्नी सोनी कुमारी के परिजनों ने बताया कि देर शाम ऑपरेशन हुआ और ऑपरेशन थियेटर से निकाल कर बरामदे पर मरीज को उठाकर खुले बरामदे में सुला दिया गया।अब रात के साढ़े दस बज रहे है। मरीज की ठंड से जान जा रही है।

यही हाल मरीज चुन्नी देवी और गीता देवी का था। मरीज के परिजनों ने बताया कि कोई नही देखने वाला, डॉक्टर से लेकर नर्स तक गायब है।

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सोमवार देर रात्रि सिमरी बख्तियारपुर अनुमडंल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में परिवार नियोजन के हो रहे ऑपरेशन में बदइंतजामी का माहौल हैरान कर देने वाला था। अस्पताल में ऑपरेशन कराने के बाद ढाई दर्जन मरीजो को हांड़ कंपाने वाली ठंड के बीच बेड पर सुलाने के बजाय अस्पताल की जमीन पर खुले में जमीन पर चादर बिछा कर ही सोना पड़ रहा था।

अस्पताल प्रशासन की इस लापरवाही से ठंड लगने और संक्रमण फैलने का खतरा बना हुआ था। परंतु डॉक्टरों के टारगेट पूरा करने की जद्दोजहद में मरीजो की स्थिति जानवरो से भी बदतर दिखी। मरीज अस्पताल के खुले बरामदे में ऑपरेशन के दर्द और ठंड दोनों से परेशान दिखे। इस ठंड में बिना व्यव्यस्था के ऑपरेशन करना सरकार की सबसे बड़ी लापरवाही है।

● अनुमंडलीय अस्पताल : नाम बड़े – दर्शन छोटे : सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ और बनमा इटहरी प्रखंड की लाखो आबादी के लिए सरकारी चिकित्सा सुविधा का एकमात्र सबसे बड़ा केंद्र अनुमंडलीय अस्पताल भगवान भरोसे है। वर्तमान में अनुमंडल अस्पताल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रतिनियुक्त स्वास्थकर्मी व कुछ नये कर्मी के सहारे चलाया जा रहा है वही गंभीर रोगों के इलाज की यहां कोई व्यवस्था नहीं है। चिकित्सा के अभाव में गंभीर रूप से बीमार मरीज असमय काल के गाल में समा जाते हैं और मामूली रूप से बीमार मरीज को सहरसा सदर अस्पताल रेफर कर दिया जाता है।

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इसके कारण अनुमंडल के सिमरी बख्तियारपुर, सलखुआ व बनमा ईटहरी प्रखंड के लाखों लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए सहरसा या फिर पटना की शरण लेनी पड़ रही है।

ज्ञात हो कि सरकार ने राज्य के 47 अनुमंडल में वित्तीय वर्ष 2009-10 में 100 शैय्या वाले अनुमंडल अस्पताल बनाने की घोषणा की थी और इसी कड़ी में कोसी क्षेत्र के लाखों लोगों की स्वास्थ्य सुविधा के लिए यहां भी 100 शैय्या वाले अनुमंडलीय अस्पताल बनाने की नींव पड़ी।अनुमंडलीय अस्पताल का विशालकाय भवन 4 करोड़ 91 लाख रुपए की लागत से बन कर तैयार हुआ। आज से लगभग दो बर्ष पूर्व 26 मई 2015 को अनुमंडल अस्पताल का बोर्ड भी लगा दिया गया परंतु अनुमंडलीय अस्पताल वाली सुविधा आज तक बहाल नहीं की गई है।

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सौ शैय्या वाले अनुमंडल अस्पताल में स्वास्थ्य विभाग से पचास से ज्यादे चिकित्सा कर्मी के स्वीकृत पद की अनुशंसा की गई है। इसके विरुद्व कुछेक डॉक्टर और नर्स को स्वास्थ्य विभाग ने पदस्थापित कर अपना पल्ला झाड़ लिया है। इसके कारण मरीजों को काफी परेशानी होती है और यह भी सत्य है कि सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडलीय अस्पताल में जो भी मरीज के परिजन रोगी लेकर आते है वह यह समझ कर आते है की चलो पुर्जा कटाने के बाद रेफर करा कर अन्य जगह ईलाज के लिये चले जायेंगे क्योकि बीते वर्षो में इस अस्पताल ने रेफर अस्पताल के रूप में प्रसिद्धि पा ली है और यहां ईलाज के नाम पर फर्स्ट ऐड कर सहरसा रैफर कर दिया जाता है।