38 वर्ष पूर्व हुये इस हादसे को याद कर आज सिहर उठते लोग

संपादक की कलम से विशेष रिपोर्ट :- आज ही के दिन यानि 6 जून 1981 को पूर्व मध्य रेलवे के सहरसा-मानसी रेलखंड स्थित धमाराघाट और बदला घाट स्टेशन के बीच रेलपुल संख्या 51 पर दुनिया का दुसरा और देश का सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था। आज उस हादसे की 38 वां बरसी हैं।

फाइल फोटो

आज से ठीक 38 साल पहले का वक्त जिसे याद करने के बाद आज भी रूह कांप जाती है। जी हां यह देश का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा है, जिसमें करीब सैकड़ो लोग काल के गाल में समा गये।

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वह मनहूस दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रहे यात्रियों से खचाखच भरी नौ डिब्बों की एक यात्री ट्रेन जिसमें चल रही थी सभी यात्री अपने अपने कामों में व्यस्त थे। कोई बात करने में मशगूल था तो कोई मूंगफली खा रहा था। कोई अपने रोते बच्चों को शांत करा रहा था तो कोई उपन्यास बढ़ने में व्यस्त था।

इसी वक्त अचानक से ट्रेन हिलती है।यात्री जब तक कुछ समझ पाते तब तक पटरी ट्रेक का साथ छोड़ते हुए लबालब पानी भरी बागमती नदी में जल विलीन हो जाती है ।

जानें कैसे हुआ था हादसा :- आज से ठीक छत्तीस वर्ष हुए भारत के सबसे बड़े रेल दुर्घटना के कारणों पर यदि गौर करें तो इस रेल दुर्घटना से जुड़ी दो थ्योरी हमेशा से प्रमुखता से लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रही।

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घटना से जुड़ी थ्योरी यह है कि छह जून 1981 दिन शनिवार की देर शाम जब मानसी से सहरसा ट्रेन जा रही थी तो इसी दौरान पुल पर एक भैंस आ गया जिसे बचाने के लिए ड्राइवर ने ब्रेक मारी पर बारिश होने की वजह से पटरियों पर फिसलन की वजह से गाड़ी पटरी से उतरी और रेलवे लाइन का साथ छोड़ते हुए सात डिब्बे बागमती नदी में डूब गये।

जबकि इस एक्सीडेंट से जुड़ी दूसरी थ्योरी यह है कि पुल नंबर 51 पर पहुंचने से पहले जोरदार आंधी और बारिश शुरू हो गई थी। बारिश की बूंदे खिड़की के अंदर आने लगी तो अंदर बैठे यात्रियों ने ट्रेन की खिड़की को बंद कर दिया। जिसके बाद हवा का एक ओर से दूसरी ओर जाने के सारे रास्ते बंद हो गये और तूफान के भारी दबाव के कारण ट्रेन की बोगी पलट कर नदी में जा गिरी।

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हालांकि घटना के काफी वर्ष बीत जाने के बाद आज भी घटना स्थल के आस पास के गांवों के लोगों का कहना है कि दूसरी थ्योरी सही है तेज आंधी में यात्रियों द्वारा खिड़की बंद करना घातक साबित हुआ।

काल के गाल में समा गये थे सैकड़ो यात्री : 6 जून 1981 का वह मनहूस दिन जब मानसी से सहरसा की ओर जा रही 416 डाउन ट्रेन की लगभग सात बोगियां नदी के गहराई में समा गई। जिस वक्त यह हादसा हुआ उस वक्त ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी थी।

ट्रेन की स्थिति ऐसी थी कि ट्रेन के छत से लेकर ट्रेन के अंदर सीट से पायदान तक लोग भरे हुए थे। उस दिन लगन भी जबरदस्त था और जिस वजह से उस दिन अन्य दिनों के मुकाबले यात्रियों की भीड़ ज्यादा थी। मानसी तक ट्रेन सही सलामत यात्रियों से खचाखच भरी बढ़ रही थी।

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शाम तीन बजे के लगभग ट्रेन बदला घाट पहुँचती है। थोड़ी देर रुकने के पश्चात ट्रेन धीरे – धीरे धमारा घाट की ओर प्रस्थान करती है। ट्रेन कुछ ही दूरी तय करती हैं कि मौसम खराब होने लगता है और उसके बाद तेज आंधी शुरू जाती है।फिर बारिश की बूंदे गिरने लगती है और थोड़ी ही देर में बारिश की रफ्तार बढ़ जाती है।

रेल हादसे की कहानी जिंदा बचे दो भाईयों की जुबानी….

बागमती नदी रेल हादसे की आँखो देखी कहानी जिंदा बचे दो भाईयों की जुबानी……!सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल संवाददाता(प्रभात खबर) आयुष कुमार से विशेष बातचीत पर आधारित रिपोर्ट :-बहादुर सिंह (हादसे में बचे यात्री)दुर्घटना वाले दिन सुबह – सुबह मैं और मेरा भाई बनारसी सिंह बदला बाजार करने गये थे, दिन भर बाजार करने के बाद शाम को ट्रेन पकड़ने बदला घाट स्टेशन पहुंचे.वहां हमारी मुलाकात मेरे पड़ोसी गंगा से हुई.लोटे में रसगुल्ले लिए खुशी से लबरेज गंगा ने बताया कि बेटी के शादी के लिए कुटुंब देखने आया था, बात पक्की हो गई है इसलिए घर वालो के लिए मिठाई लेकर जा रहा हूँ.उससे बातचीत चल ही रही थी कि 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन बदला घाट स्टेशन पर आकर रुकी।ट्रेन में भीड़ ज्यादा थी, खचाखच यात्रियों से भरी ट्रेन में हम दोनों भाई और हमारा पड़ोसी गंगा बमुश्किल यात्रियो के बीच से होते हुए सीट तक पहुंचे.सीट खाली नही थी इसलिए सीट के ऊपर लगे लकड़ी के फट्टे पर मैं बैठ गया, वही मेरा भाई और गंगा भीड़ में ही यात्रियों के बीच खड़ा रहा।ट्रेन स्टेशन से खुल कर थोड़ी दूर बढ़ी ही थी कि तेज आंधी शुरू हो गई.आंधी की रफ्तार अन्य दिनों की अपेक्षा ज्यादा थी.थोड़ी ही देर में बारिश भी पड़ने लगी.डिब्बो के अंदर बारिश की बुँदे आने लगी तो यात्रियों ने धड़ाधड़ बॉगी के सभी खिड़कियां बंद करनी शुरू कर दी.वही तेज आंधी रुकने का नाम नही ले रही थी जिससे डिब्बे के गेट पर खड़े यात्रियों को खासी परेशानी हो रही थी.इसी बीच किसी ने डिब्बे के गेट को बंद करने को कहा तो गंगा ने जोर से गेट बंद कर रहा हूँ बोल कर गेट बंद कर दिया.जबकि, डिब्बे के अन्य गेट शायद खुले थे.तभी गाड़ी जोर से हिलती है, हम सभी यात्रियों का अंदेशा हो गया कि कुछ बुरा होने वाला है.मैने अपने भाई को कहा कि बनारसी, शायद ट्रेन पलट जायेगी.बनारसी यह सुन स्तब्ध था.इसी बीच अचानक जोर से हिलते हुए ट्रेन पलट गई…..मेरी आँख पानी में खुली। चूंकि, मुझे तैरना आता था तो मैने आँख खुलते ही तैरना शुरू किया।जब मुझे लगा कि मैं संभलने वाली स्थिति में हूँ तो मैने बनारसी और गंगा को आवाज दी.परंतु बागमती के उस जल से गंगा की तो आवाज नही आई परंतु हे हो भईया कहता बनारसी की आवाज कानो में गूंजी.मै चौक गया और इधर – उधर देखने लगा, तब तक बनारसी ने आकर मेरे पीठ को पकड़ लिया.धीरे – धीरे हम तैरने लगे.बनारसी ने मुझसे पूछा कि भैया, हम बच तो जायेंगे.मैने इसे ढाढ़स बंधाते हुए बताया कि जरूर बचेंगे.तब तक कई और पानी में हल्का – हल्का तैरते – तैरते हमारे पास पहुँच गये.सभी को साथ लिए मैं किनारे पर पहुंचा. बनारसी को कई जगह चोट लगी थी और कई जगह से खून बह रहा था, इसलिए थोड़ी देर बाद उसे प्रशासन की सहायता से खगड़िया अस्पताल में भर्ती कराया गया.मुझे भी शरीर में कई जगह चोट लगी थी पर मेरा दिमाग गंगा पर था, लग रहा था कही से भी वह आवाज दे दे की मैं बागमती में कूद कर उसे बचा लूँ.." वर्तमान में बहादुर सिंह और बनारसी सिंह जीवन के अंतिम पायदान पर है।बहादुर सिंह अपने दस पोता और सात पोती के संग जिंदगी जी रहे है। बनारसी सिंह को एक पोता और एक पोती है जिसे पुचकारते उनकी दिन और रात गुजरती है।

Posted by बिहार फेसबूक सामाचार on Tuesday, June 6, 2017

तब तक ट्रेन रेल के पुल संख्या 51 के पास पहुँच जाती है। इधर ट्रेन में बारिश की बूंदे आने लगती है और यात्री फटाफट अपने बॉगी की खिड़की को बंद कर लेते है। तब तक ट्रेन पुल संख्या 51 पर पहुँच जाती है।पुल पर चढ़ते ही ट्रेन एक बार जोर से हिलती है।ट्रेन के हिलते ही ट्रेन में बैठे यात्री डर से काँप उठते है।कुछ अनहोनी होने के डर से ट्रेन के घुप्प अँधेरे में ईश्वर को याद करने लगते है।

तभी एक जोरदार झटके के साथ ट्रेन ट्रैक से उतर जाती है और हवा में लहराते हुए धड़ाम से बागमती नदी से समा जाती है।