यहां उपजे तरबूज नेपाल से लेकर बंगाल तक के साथ लोकल मार्केट में मचा रही धूम

कोशी की कछार से लौटकर V & N की विशेष रिपोर्ट : हिमालय की तराई से निकलने वाली बिहार की शौक कही जाने वाली नदी कोशी यहां के लोगों के लिए हमेशा दुखदाई रहा है। इस नदी के आसपास रहने वाले प्रत्येक साल इसकी विभिषिका से परेशान रहते हैं।

उसी कोशी की कछार पर रेतीली जमीन को कुछ वर्ष पहले तक यहां के किसान बेकार मान छोड़ दिया था लेकिन आज उसी जमीन पर उगने वाले तरबूज की मिठास यहां के किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है।

ये भी पढ़ें : गर्मी शुरू होते ही कोशी के पीएमसीएच में स्वास्थ्य व्यवस्था की खुली पोल

यहां उपजे तरबूज की डिमांड पड़ोसी देश नेपाल सहित पश्चिम बंगाल और बिहार के कई शहरों के लोग कर रहे हैं बाजारों में यहाँ के तरबूजों की मांग का ही असर है कि चार वर्ष पूर्व चार एकड़ से शुरू हुई तरबूज की खेती का दायरा अब बढ़कर पांच सौ एकड़ में फैल गई है।

दरअसल कोशी कछार की दशकों से बेकार और रेतीली सैकड़ों एकड़ जमीन पर इन दिनों तरबूज की अच्छी खासी खेती हो रही है. इस खेती से किसानों की आय तो काफी बढ़ ही रही है. साथ ही साथ सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।

ये भी पढ़ें : कहां हैं कोशी के तीस मार खां नेता,एम्स जा रहा है दरभंगा

जी हां हम बात कर रहे हैं सहरसा जिले के महिषी प्रखंड का बलुआहा गांव जहां कोशी नदी की बहती धारा के किनारे की सैकड़ों एकड़ रेतीली जमीन यूं ही बेकार पड़ी रहती थी। बाढ़ और कटाव के भय से यहां के किसान इस बलुआही जमीन पर खेती करने से हिचकते थे।

चार वर्ष पुरानी बात है। यहां रह कर फेरी का काम करने वाले उत्तर प्रदेश के गाजीपुर गांव के आरिफ की नजर लंबे-चौड़े क्षेत्र में फैले इस बलुआहा जमीन पर पड़ी। उसने जमीन के मालिक से बात की और उसी साल कुछ कर्ज लेकर प्रयोग के तौर पर एक एकड़ में तरबूज की खेती शुरू की।

ये भी पढ़ें : सहरसा: नाजायज संबंध की आड़ में दहेज के लिए नवविवाहिता की हत्या

तीन महीने में तैयार हुए तरबूज ने उसे अच्छा फायदा दिया।फिर क्या था। आरिफ हर साल अपनी खेती का दायरा बढ़ाता चला गया। आज चौथे साल आरिफ उत्तर प्रदेश से 50 किसानों को लाकर उनकी मदद से 500 एकड़ में तरबूज उपजा रहा है।

किसान मो. आरिफ का कहना है कि तरबूज की खेती से उसे अच्छी-खासी आमदनी हो रही है। उसने बताया कि एक एकड़ की खेती में लगभग 30 हजार रुपये की लागत आती है और एक एकड़ से फलों की बिक्री के बाद उसे 15 से 20 हजार रुपये का फायदा होता है। आरिफ की यह तरकीब गांव में भी अच्छा असर दिखाने लगा है।

ये भी पढ़ें : करेंसी : RBI ने जारी किए बीस रूपए के ये नोट,जल्द होंगे आपके हाथों में

अब गांव के लोग भी आरिफ के साथ जुड़कर तरबूज की खेती कर रहे हैं। खेत के मालिक और स्थानीय किसान डब्लू सिंह का कहना है कि आरिफ से मिलने के बाद ही उन्होंने भी तरबूज की खेती शुरू की। अभी गांव के कम से कम 100 किसान उसके साथ जुड़े हैं।

वहीं इन किसानों का कहना है कि महिषी के बलुआहा में उपजने वाला तरबूज पड़ोसी देश नेपाल सहित पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और बिहार के कई जिलों में ट्रकों में भरकर भेजा जा रहा है। तरबूज की खेती और बिक्री से रोजगार और आमदनी दोनों मिल रही है।

ये भी पढ़ें : खगड़िया: सुबह 7 बजे से 16,68,233 वोटर करेंगे बीस प्रत्याशीयों के भाग्य का फैसला

किसान कहते हैं कि नवम्बर माह में तरबूज की खेती की शुरुआत होती है जो जून के अंतिम सप्ताह में समाप्त होता है। वहीं इस खेती में ग्रामीण महिलाएं भी पीछे नही है इस कड़कड़ाती धूप में खेतों में पहुंच स्थानीय किसान की पत्नी भी खेती में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही है।